मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

मधु सिंह : होठों की नमी

हालात  जिंदगी   के  हद  से  गुज़र गए हैं
पलकों  पे  ख्वाब  के  शोले  बिखर गए हैं

चाहा  था  चूम लूँ  होटों  की  नमी  उनके
होटों से आग के कई दरया गुज़र गए हैं

जुगनू जो  चमकते थे  रातों  के अंधेरों में
रूख मोड़ के वो जुगनू जाने किधर गए हैं

तन्हाईओं का पहरा ख्वाबों पे लग गया है
पर खाबों के परिदों के कबके बिखर गए हैं 

गोया कहीं  खो गया  मेरी यादों  का समंदर
लम्हात  जिंदगी   के   कबके  ठहर गए  हैं

चाहा था जिसे उम्रभर वो ही न मिल सका
चाहतों के चाक -चाक  पुरज़े बिखर गए हैं



                                  मध् "मुस्कान "


 






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