थोड़ा समय मिला और मैं आप की अदालत में
दीपावली की शुभकामनाओं के साथ
पुणे से
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ? हे अंतर्मन के संत मेरे
जीवन की मधुरिम बेला में
विरह सेज कंटक बन चुभते
यौवन की सुरभित घाटी में
प्रणय दीप जल जल बुझते
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ?हे अंतर्मन के संत मेरे
अब रहा नहीं जाता मुझसे
अब सहा नहीं जाता मुझसे
छुप गए कहाँ निष्ठुर कठोर
उठता न भार सांसों का मुझसे
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ? हे अंतर्मन के संत मेरे
देख प्रात नभ की लाली
लिए हाथ पूजा की थाली
गिरी गह्वर मैं भटक रही हूँ
यौवन उपवन से रूठा माली
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ?हे अंतर्मन के संत मेरे
और कहें क्या धरा न धंसती
प्रणय कलह का अंत नहीं हैं
तिमिर बीच जीवन उलझा है
क्या इस जीवन का अंत यही है
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ?हे अंतर्मन के संत मेरे
न होता राख न,जलता जीवन
पल -पल युग पर भारी लगते
रोम रोम से धुआँ उठ रहा
विरह अनंत पीड़ा बन जलते
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ?हे अंतर्मन के संत मेरे
बेला नहीं मिलन की आई
क्यों चुप हो ? हे कन्त मेरे
उमड़ घुमड़ रोती तरूणाई
हे चिर यौवन के संत मेरे
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ?हे अंतर्मन के संत मेरे
अविदित नहीं मेरी कुछ तुझसे
अन्दर ही अन्दर ही घुलते हैं
अरे बिवस है कितना जीवन
क्यों न पाँव बेड़ी खुलते हैं
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ?हे अंतर्मन के संत मेरे
हाय ! छिन गया जीवन मेरा
प्रणय पीर का छोर नहीं है
तड़प तड़प जीना भी क्या है
जीवन में अब भोर नहीं है
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ?हे अंतर्मन के संत मेरे
टूट गईं आशा की किरणें
तिमिर बन गया जीवन मेरा
देखूं कहाँ भोर की किरणें
लिखा भाग्य में नहीं सवेरा
बोलो बोलो कुछ तो बोलो
हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! हे दिग्दिगंत ! हे कन्त मेरे
तड़प तड़प हम कहो करें क्या ? हे अंतर्मन के संत मेरे
मधु "मुस्कान "
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