बुधवार, 12 नवंबर 2014

मधु सिंह : नाम इक फ़क़ीर का बदनाम रहे




     थोड़ा वक्त मिला और मैं हाज़िर
  

फ़लक से चादनी उतरे औ  सरे बाम रहे 
सआदत उनको मिले खराबी मेरे नाम रहे         

हम आश्ना रहें  उनकी  दिल फरेबी से     
तहजीब जिंदा रहे  औ दुआ -सलाम रहे

हजार  पर  लगें  उनकी बलंदिओं को
महफूज रिवायत रहे,न जेर-ए-दाम रहे

 हूज़ूम यारों का  उनकी  गली  से गुज़रे 
औ  नाम  इक  फ़क़ीर का बदनाम रहे 

उनकी  महफ़िल  उन्हें   मुबारक हो
लाख  अँधेरा मेरे  घर सरे -शाम  रहे

                                      मधु "मुस्कान"

सआदत--- अच्छाई
आश्ना---जानकार
रिवायत---परम्पराएँ 
जेर-ए-दाम--- फन्दे में

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