शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

मधु सिंह : हे कपोतिनी ! तुम सुनो आज

 

   
       हे कपोतिनी, तुम सुनो आज  !


       बन कपोत प्रेमी तेरा जब   , डैनें   गुम्बद  पर लहराएगा
       गिर -गिर कर तेरी बाँहों में वह आशिक तेरा कहलाएगा

       जरा गिरा ले पट  घूँघट के ,और सजा  ले सपन नयन में
       इतिहास के स्वर्णिम पन्नो में इक नया नाम जुड़ जाएगा

       नहीं मौन ,इतिहास सजग है,लम्हों को सदियाँ लिखने को
       तुम  नूरजहाँ   बन   जाओगी ,  वह   सलीम   कहलाएगा

       उलट जरा इतिहास के पन्ने ,एक नज़र तुम उसपर डालो
       क्या फिर सलीम  को  जिंदा  दीवारों  में  चुनवाया जाएगा

       चीख पड़े न कब्र अकबर की , रो  न पड़े  मुमताज बेचारी
       ताज महल इस दुनियां में फिर इक नया बनाया जायेगा

       नीरव नभ के वो दीवानें .जब  बाँहों में  गिर तुम  इतराओगे 
       रे कपोतिनी ,पत्थर की जगह   तेरे  दिलको  तरसा जायेगा  

       

                                                                          मधु " मुस्कान "

      
  
     
  
     
     
   
     
     
       

3 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय , बहुत ही सुंदर लेखन , और प्रभावित करती हुई रचना धन्यवाद
    नया प्रकाशन -: घरेलू उपचार( नुस्खे ) भाग - ६

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  2. सुन्दर
    पढ़कर मन आनंदित हुआ-
    आभार

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    नीचे दिया हुआ चर्चा मंच की पोस्ट का लिंक कल सुबह 5 बजे ही खुलेगा।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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