सोमवार, 9 दिसंबर 2013

मधु सिंह : विशालाक्षा (8)


   
विशालाक्षा



उषा काल की लाली  से पहले
लिए हाथ शिव का प्रसाद तुम
दिशि पश्चिम प्रयाण तुम करना 
भोले  शिव को  कर  प्राणाम तुम

लिए व्यथा तुम  ह्रदय कमल में
हर्षित मन  विन्ध्यन गिरि जाना
माँ काली के  चरण कमल में
नत मस्तक हो शीश नवाना

कर परिक्रमा माँ काली  की 
निर्जनता की छांव तले 
कन्दमूल फल भोजन होगा 
स्नेहिल माँ   के  पाँव तले 

मगर न  होना विचलित पथ से
बीत  न जाए  लग्न हवन की  
सावन   कहीं  बरस  न  जाये 
आग न बुझने पाए हवन की 

अभय प्रयाण सफल हो तेरा 
सकल कामना  फलित हो मन की 
निर्जनता  के  महा तिमिर में 
वन उड़ना  तुम ज्योति  हवन की 

लेकर अनिल किरीट भाल पर
बन झंझानिल  उड़ना होगा
हटा गगन  के मेघ पंथ से 
ले गति अवाध चलना होगा 

तीर्थराज नव  गंतव्य तुम्हारा 
एक नहीं त्रय माओं का संगम 
गंगा यमुना विलुप्त सरस्वती
का दृश्य दिखेगा बड़ा विहंगम 

प्रयाग राज की महिमा अपार 
सकल मनोरथ पूरण होंगें
मातायें स्वागत गान करेंगीं 
द्वार -द्वार पर तोरण होंगें  



              मधु "मुस्कान"















                                               

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