चली लांघने सप्त सिन्धु मैं
(बेटी के पास लॉसएंजलिस ,केलीफोर्निया में,एक माह के प्रवास पर )
चली लाघने सप्त सिन्धु मैं कोई खड़ा पुकार रहा है
अपलक नयनों से रह -रह कोई जैसे मुझे निहार रहा है
रह -रह गूँज रही है किसकी मधु मिश्रित ध्वनि कानों में
पश्चिम के उस दूर क्षितिज से कोई मुझे पुकार रहा है
रचा बसा कर सपन प्यार के बचन की स्मृतिओं के
इंद्र धनुष ही पहन के साड़ी रह - रह मुझे दुलार रहा है
देखो नभ की लाली चढ़ , उमड़ रही कुसुमों की सरिता
जैसे छिप-छिप विधु अम्बर से रह-रह मुझे पुकार रहा है
बाहु पास में भर-भर मुझको उदधि निमंत्रण देता है
शांत मुदित विह्वल प्रशांत रह -रह मुझे पुकार रहा है
नील कुसुमों के वारिद बीच,पहन नूतन कुर्वर परिधान
विपिन से लेकर सौरभ भार रह -रह कोई पुकार रहा है
रुक न सकूगीं आ जाऊँगी ,बन कर एक पवन का झोंका
देखो आकुल कितना हो मलयानिल मुझे पुकार रहा है
नील कुसुमों के वारिद बीच,पहन नूतन कुर्वर परिधान
विपिन से लेकर सौरभ भार रह -रह कोई पुकार रहा है
रुक न सकूगीं आ जाऊँगी ,बन कर एक पवन का झोंका
देखो आकुल कितना हो मलयानिल मुझे पुकार रहा है
मधु मुस्कान "
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