तरशा गर नहीं जाता कोई पत्थर करीने से
न होता मोल ज्यादा पत्थर का नगीने से
न होता ताज दुनियां में न मुमताज हँसतीं
रौनक ताज में आई है मोहब्ब्त के सफ़ीने से
तबस्सुम लुट गई होती तमन्ना मर गई होती
संवारा गर नहीं जाता आशिक के पसीने से
छुपा पत्थर में कहीं एक दिल भी होता है
यही आवाज़ आती है मोहब्ब्त के मदीने से
चलो अब मोहब्ब्त की नई दुनियां बसा लें
जहाँ हर पत्थर उठा हमको लगा ले अपने सीने से
मधु "मुस्कान "
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