है किसकी बद्दुआ यह,है किसकी यह दुआ
छोड़ी नहीं है हमने अभी दामने -उम्मीद
कुछ दूर ही चला था ले तिश्नगी लबों पर
लम्हाते - तीरगी ने बड़े प्यार से छुआ
ये इश्क़े जुस्तजू थी या हुश्ने - गुफ्तगू
मेरा चाहने वाला ता -उम्र मेरा नहीं हुआ
ज़ज्बात ज़िन्दगी के यूँ खामोस हो गए
उधर वो क्या गया कि इधर मौत ने छुआ
कत्बों -समाधि लेखों , मक्तूल - जिसका क़त्ल हो , तीरगी -अंधेरा
मधु """ मुस्कान "
हर शेर खुबसूरत है
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
latest postऋण उतार!
लाजबाब,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
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जवाब देंहटाएंये इश्क़े जुस्तजू थी या हुश्ने - गुफ्तगू
मेरा चाहने वाला ता -उम्र मेरा नहीं हुआ
बहुत खूब क्या बात है .फाग मुबारक .फाग की प्रीत और रीत मुबारक .
बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने,
जवाब देंहटाएंमुबारकवाद!
लाजबाब, उम्दा ग़ज़ल***** गहनतम अनुभूति एवम परलौकिक सत्ता के
जवाब देंहटाएंप्रति समर्पण के साथ इहलौकिक व्यथा का चरम
एवम परम विन्दु
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जवाब देंहटाएंये इश्क़े जुस्तजू थी या हुश्ने - गुफ्तगू
जवाब देंहटाएंमेरा चाहने वाला ता -उम्र मेरा नहीं हुआ
बहुत उम्दा
वो जो इश्क था वो जूनून था
ये जो हिज्र है ये नसीब है
बहुत ही उम्दा गजल के लिए ,,,,बधाई मधु जी,,,
जवाब देंहटाएंRecentPOST: रंगों के दोहे ,
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...हर शेर दिल को छू गया...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंयही तो इब्तदा और इन्तहां है
जवाब देंहटाएं'जब भी छुआ है मौत ने बड़े प्यार से छुआ।
जवाब देंहटाएंहै किसकी बद्दुआ यह,है किसकी यह दुआ।।' सार्थक और उत्कृष्ट वर्णन। जिनको मौत प्यार से छू रही है वे नसिबवान माने जा सकते हैं।
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