मचलती ख्वाहिशों का क्या होगा
फ़लक से तोड़ कर तारे सज़ा दूँ तेरी ज़ुल्फों में
बना धडकन बसा लूँ ख्वाहिसों में आज मैं अपने
या झुलस जाऊ तपन में तेरी सांसों की
सिमट आगोश में तेरे लिपट जाऊ मैं सीने से
हर खुशबू से तेरी ही खुशबू निकलती है
सवारूँ तेरी जुल्फों को बिठा आगोश में अपने
चला जाउं कहीं मैं दूर धरती से, ले हाथ तेरा हाथ में अपने
सुना दूँ दिल की धडकन ,रख दिल अपना ,दिल पर तेरे
बता दे आज तू जानम, मेरे इन मचलती ख्वाहिशों का क्या होगा
मधु "मुस्कान "
वाह,श्रृंगारिकता की पराकाष्ठा,सुंदर ।
जवाब देंहटाएंफ़लक से तोड़ कर तारे सज़ा दूँ तेरी ज़ुल्फों में
जवाब देंहटाएंबना धडकन बसा लूँ ख्वाहिसों में आज मैं अपने
so nice lines with great emotions
please dont use read colour
बहोत खुब वाह वाह वाह बहोत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (10-06-2013) को सबकी गुज़ारिश :चर्चामंच 1271 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नाज़ुक अहसासों से सजी बहुत खूबसूरत एवँ प्रेमपगी रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत ......
जवाब देंहटाएंखूबशूरत ,नाज़ुक और बोलते अहसास ,आप की इस बेहतरीन गजल की शान में नजर है मोहम्मद अली साहब के चंद अल्फाज़ " या रब इस इम्तिहान से मुझको निकल दे ,दरिया भी सामने है मेरे लब पे प्यास भी ,चर्चामंच पे आप की उपस्थिति अक सौगात सी लगती है ,बधाई
जवाब देंहटाएंखूबसूरत नज़्म
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंbahut khubsoorat...pyar say bhari rachna..
जवाब देंहटाएंवाह ,बहुत खूबशूरत ,सुंदर प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंफालो करने बाद भी आपके ब्लॉग का लिंक नही मिल पा रहा,इस कारण से आपके पोस्ट पर नही पहुच पाता,,,
recent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत ख़ूबसूरत प्रेमपगी रचना...
जवाब देंहटाएंबता दे आज तू जानम, मेरे इन मचलती ख्वाहिशों का क्या होगा..bahut mushkil hai batana ..badhiya expression ...
जवाब देंहटाएंप्रेम के रस में रची ... लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत सुन्दर .......
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