कोई फूल खिले न खिले
कुछ उसकी अना थी,कुछ उसका गरूर था
यूँ हीं ख़त्म नहीं हो गये सिलसिले
ज़िन्दगी बहुत उदास -उदास लगती है
गर ज़िन्दगी में न हों थोड़े शिकवे -गिले
ज़बां है की ख़ामोश खुलती नहीं कभी
हाय ये दिल भी क्या की सम्हाले न सम्हले
ज़बां है की ख़ामोश खुलती नहीं कभी
हाय ये दिल भी क्या की सम्हाले न सम्हले
आये तो यूँ कि न जायगें अब कभी
गये तो ऐसे गये ले खामोशियाँ चले
मैंने काट ली जुबां अपनी जिनके लिए
फ़िर वो अब कहीं मिले की न मिले
यादों में अक्श उनकी सूरत है मचलती
खिल गये जख्म सब कोई फूल खिले न खिले
मधु "मुस्कान"
गये तो ऐसे गये ले खामोशियाँ चले
मैंने काट ली जुबां अपनी जिनके लिए
फ़िर वो अब कहीं मिले की न मिले
यादों में अक्श उनकी सूरत है मचलती
खिल गये जख्म सब कोई फूल खिले न खिले
मधु "मुस्कान"
ज़िन्दगी बहुत उदास -उदास लगती है
जवाब देंहटाएंगर ज़िन्दगी में न हों थोड़े शिकवे -गिले
वाह ! बहुत सार्थक सोच
यादों में अक्श उनकी सूरत है मचलती
जवाब देंहटाएंखिल गये जख्म सब कोई फूल खिले न खिले
मिलते हैं ज़िन्दगी में ऐसे भी मुकाम वाह बहुत खूब कहा आपने
बहुत सुंदर ग़ज़ल की अभिव्यक्ति .......!!
जवाब देंहटाएंtum gaye sab gaya..koi apni hi mitti tale dab gaya....umda!
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