तू क्या से क्या हो गया
तू क्या से क्या हो गया मेरे दोस्त
कल हीरा, आज पत्थर बन गया दोस्त
तस्बीरे-वफा सा कल तक तू लगता था
आज खफ़ा -खफ़ा सा क्यूँ हो गया दोस्त
बंदगी छोड़ दिया,रिश्ता तोड़ दिया
अच्छा हुआ कि तू आज ख़ुदा हो गया दोस्त
अज़ीब दोस्त है खफ़ा हो के हंसता है
तू हंसता रहे हमेसा,खफ़ा-खफ़ा ही रहे दोस्त
न हाल पूंछते हो न चाल पूंछते हो
जब भी मिलते हो मुह फ़ेर लेते हो मेरे दोस्त
तू चाहे जितना बदल ले खुद को
हम जब भी मिलेंगें हाल पूंछ लेंगें मेरे दोस्त
अज़ीज़ जौनपुरी
wah wah bahut khoob
जवाब देंहटाएंअज़ीब दोस्त है खफ़ा हो के हंसता है
जवाब देंहटाएंतू हंसता रहे हमेसा,खफ़ा-खफ़ा ही रहे दोस्त-------
waah gajab ka andaj hai
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंलाजवाब अभिव्यक्ति विचारों की |
जवाब देंहटाएंलाजवाब अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंwah ! umda
जवाब देंहटाएंउत्तम
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! हर शेर लाजवाब है ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....पढ़ कर एक गीत याद आ गया ..." मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया , सुना है के तू बेवफा हो गया "
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (09-06-2013) को तो क्या हुआ : चर्चा मंच 1270 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तू क्या से क्या हो गया मेरे दोस्त
जवाब देंहटाएंकल हीरा, आज पत्थर बन गया दोस्त....बहुत सुन्दर!
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