तुम न आये
सो गये सब दिये शाम के वक्त ही
जिंदगी जिंदगी से उलझती गई
रात आती रही रात जाती रही
तुम न आये मगर सहर हो गई
चाँद ढ़लता गया चाँदनी खो गई
दिल धड़कता रहा ख्वहिशें सो गईँ
पर जुगनुओं के कहीं गिर गये
तुम न आये मगर सहर हो गई
आज की बात थी आज की रात थी
कल की क्या नहीं देखा है किसनेवक्त को भी हजारों पर लग गये
तुम न आये मगर सहर हो गई
धड़कने दिल की यूँ हीं धड़कती रहीं
चूड़ियों की खनक कहीं खो गई
पायलें पाँव की बेड़ियाँ बन गईं
तुम न आये मगर सहर हो गई
बिंदिया माथे की कहीं गिर गई
मेरे होठों की सारी हँसी खो गई
सपने सारे धरे के धरे रह गये
तुम न आये मगर सहर हो गई
बेबसी मेरी तुमने कभी सोची नहीं
न संदेस घुंघरुओं के तुमने पढ़े
दिल की धड्कन यूँ ही धड़कती रहीं
तुम न आये मगर सहर हो गई
अब कहानी मेरी होने चली है
आखिरी आस आखिरी साँस है
न आये ही तुम न खताएँ बताईं
आखिरी जिंदगी की सहर हो गई
मधु "मुस्कान "
बेहद उम्दा..... वाह वाह वाह
जवाब देंहटाएंनादाँ था बेचारा दिल ही तो है ,हर दिल से खता हो
जवाब देंहटाएंहै उसका भी बेचारा दिल ही तो था :) दर्दे दिल को हवा देती सुन्दर रचना
उम्दा प्रस्तुति..बहुत बधाई..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अहसासों की बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभावमय और सजीव अहसास कराती रचना...शब्द जिन्दा हो गये और दिल को छू गये
जवाब देंहटाएंपर तुम न आये सुबह से शाम हो गई
बेहद शानदार रचना..
जवाब देंहटाएंसुन्दर और हृदयस्पर्शी रचना..
सुन्दर प्रस्तुति भावप्रधान रचना " दिल की धड्कन यूँ ही धड़कती रहीं तुम न आये मगर सहर हो गई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शव्दों का चुनाव सशक्त भाव बेहतरीन पंक्तियां ..............शव्दों के बारे में जितना भी कहा जाय कम ही होगा ............. सो गये सब दिये शाम के वक्त ही
जवाब देंहटाएंजिंदगी जिंदगी से उलझती गई
रात आती रही रात जाती रही
तुम न आये मगर सहर हो गई
अत्युत्तम |साधुवाद |
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