न वो आए न नींद आई
न वो आए , न नींद आई , न ख्वाब आए
कौन है मेरी पलकों में इस कदर समाया हुआ
रस्में - सितम एक नहीं हज़ार थीं लेकिन
है कोई लबे- खामोशिओं से ज़ुल्म ढाया हुआ
बात दीगर है कि न वो सनम है न ख़ुदा मेरा
है वो क्या मेरा जो इस तरह है दिल पे छाया हुआ
गुज़री मेरी भी और उसकी भी , गुज़र भी जाएगी
है ज़िगर पे चोट कहीं वो गहरा बहुत खाया हुआ
शब-ए- इंन्तिज़र ,सहरे-जुनूं के ज़लज़ले तो देखो
है किसी यार की आँखों में जाम पी के आया हुआ
है क्या हुआ उसे, मेरे दिल पे हज़ार ख़राबी गुज़री
कि दिले-कू-ए-यार में है एक ज़लज़ला आया हुआ
मधु "मुस्कान"
कुशल कारगिरी लेखन में
जवाब देंहटाएंउम्दा गज़ल
बात दीगर है कि न वो सनम है न ख़ुदा मेरा
जवाब देंहटाएंहै वो क्या मेरा जो इस तरह है दिल पे छाया हुआ
...वाह! बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
न वो आए , न नींद आई , न ख्वाब आए
जवाब देंहटाएंकौन है मेरी पलकों में इस कदर समाया हुआ
beautiful lines so nice
बहुत खूब , गहराईओं को समेटे हुए उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गज़ल ! बहुत खूब लिखती हैं आप !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर .क्या अंदाज़े बयानी है मधु जी .(अनिल मधु जी )
जवाब देंहटाएंशब-ए- इंन्तिज़र ,सहरे-जुनूं के ज़लज़ले तो देखो
है किसी यार की आँखों में जाम पी के आया हुआ
ॐ शान्ति .कल पीस मार्च के लिए न्युयोर्क के लिए प्रस्थान है ४ - ७ जुलाई पीस विलेज में कटेगी .ॐ शान्ति .शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .