मंगलवार, 9 जुलाई 2013

मधु सिंह : कयामत सी गुज़री है

      कयामत सी गुज़री है 


   हमारी ज़िन्दगी में क्या- क्या  न गुजरी है
   ग़मों  की  रात  बड़ी  बेकली  सी गुज़री है 

   दामन पे मेरे बिजलियों की बरसात हुई है 
   कल ही तो मिरी ज़िन्दगी से मौत गुज़री है 

    कुछ लोग खामोश मगर ये सोच रहे होंगें 
    क्या  हुआ  कि  हादसों  की रात गुज़री है 

    ज़िन्दगी जल -जल के ख़ाक  हुई जाती है 
    हाय ये ज़िन्दगी बड़ी गरीब  सी  गुज़री है 

    मेहरबां  हो  न  सकी  मौत  भी  मुझ पर
    गुज़री है मौत बड़ी हमसफ़र सी गुज़री है

    है हकीकत की बीमार की हालत नाज़ुक 
    मौत  भी गुज़ारी पर न मौत सी गुज़री है 

    है गुज़ारिस कि मौत आये मेरे घर आये 
    लगे की मौत गुज़री है मौत सी गुज़री है 

                                        मधु "मुस्कान"



 


  


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