कहीं ये मोहब्बत नहीं है
कहती सखियाँ सभी तू पागल सी लगती
रह खींचना अपने बालों फ़िर रोना चीखना
आहट किसी की पर समझना उसी की
बात करना उसी की झेपना फिर उसी से
पकड़ हाथ में खत,यूँ दिल थाम लेना,
छुप आँसू बहाना फ़िर रोना सिसकना
छुप आँसू बहाना फ़िर रोना सिसकना
बारहां खोलना बंद करना खतों को
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
चिलमन हटा झाकना, डगर डाकिए की
देखना डाकिये का उसका का न दिखना
देखना डाकिये का उसका का न दिखना
रह माथे की सलवटों पर ऊँगली रगड़ना
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
दूध का रोज बहना और जलना रसोईं में
कह उफ़ पल्लू से पोछना आँसुओं का
कह उफ़ पल्लू से पोछना आँसुओं का
खीझ दातों में रख ऊँगलियों को दबाना
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बततो नहीं है
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बततो नहीं है
न खाना मगर कह दिया खा लिया
भूलना ख़ुद को फ़िर खोजना ख़ुद खुदी को
जाना कहीं पर पहुच जाना कहीं को
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
है पढ़ी भी नहीं मैंने किताबे -मोहब्बत
है होती ये कैसी न देखा कभी भी कहीं भी
है होती ये कैसी न देखा कभी भी कहीं भी
मुझको तो कोई यह बीमारी है लगती
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
कहती सखियाँ सभी तू पागल सी लगती
रह खींचना अपने बालों फ़िर रोना चीखना
फ़िर अचानक हाथ माथे पर रख रगड़ना
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
आहट किसी की पर समझना उसी की
बात करना उसी की झेपना फिर उसी से
सुबह - शाम तस्बीर फ़िर उसी की बनाना
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
रास्ते चलते चलते फिर यूँ मुड़ना अचानक
देखना किसी को पर समझना उसी को
रोज़ तस्बीर उसी की अपने दिल में बनाना
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
लगा तस्बीर उसकी सीने से अपने
देर रात तक उससे यूँ हीं बाते भी करना
फ़िर तस्बीर को अपने हाथों खाना खिलाना
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
लगता हमेसा की जैसे वही आ रहा है
पर आना न उसका फ़िर रह-रह आँसू बहाना
रो -रो के यूँ हीं तड़पना औ मरना तेरा
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
बनाई मोहब्बत जिसने वो बड़ा बेरहम था
दर्दे - मोहब्बत से लगता वो वाकिफ़ न था
गर बनाई मोहब्बत राहे रहबर भी बनाता
क्या कहें उस ख़ुदा को मेरी किश्मत नहीं है
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
रास्ते चलते चलते फिर यूँ मुड़ना अचानक
देखना किसी को पर समझना उसी को
रोज़ तस्बीर उसी की अपने दिल में बनाना
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
लगा तस्बीर उसकी सीने से अपने
देर रात तक उससे यूँ हीं बाते भी करना
फ़िर तस्बीर को अपने हाथों खाना खिलाना
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
लगता हमेसा की जैसे वही आ रहा है
पर आना न उसका फ़िर रह-रह आँसू बहाना
रो -रो के यूँ हीं तड़पना औ मरना तेरा
बताओ मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है
बनाई मोहब्बत जिसने वो बड़ा बेरहम था
दर्दे - मोहब्बत से लगता वो वाकिफ़ न था
गर बनाई मोहब्बत राहे रहबर भी बनाता
क्या कहें उस ख़ुदा को मेरी किश्मत नहीं है
मधु "मुस्कान"
Priyakar ki chiththi per doosre paksh ki ras-sikta pratikriya kaa Kaviyatri dwaaraa adbhut chitran.
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