इक नज़र जब उनकी नज़र देखते हैं
सर झुकाकर के अपना ज़िगर देखते हैं
दिले – पासदारी की ज़ुरूरत बहुत
है
मौजे -दरिया में मौजे -खतर देखते हैं
क़दम बढ़ न जाएँ कहीं उनकी तरफ
जिनके सीने में अपना ज़िगर देखते हैं
है बहुत
रिश्ता पुराना धुंआ
आग का
अपना जलता हुआ हम ज़िगर देखते हैं
है जल्वा मोहब्बत का महफ़ूज दिल में
आग पत्थर से निकले जिधर देखते हैं
पासदारी – रखवाली
मधु “मुस्कान”
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