वेणु - बंध में जुगनू सजाकर
मैं बन स्फुलिंग उड़ जाऊँगी
सपनों का संसार बसाकर
जी भर , मचलूँगी मुस्काऊँगी
लिए हाथ कलश अमृत का
चंद्रप्रभा के सोपान पे चढ़कर
बनी पुजारिन बेद पाठिनी
अविरल, मंगल गीत सुनाऊँगी
मलयानिल की सुरभि सहेजे
इंद्रधनुष के सेतु पे चलकर
पहन प्यार का कर्णफूल
मैं पिया मिलन को आऊँगी
मंदिर की घंटा - ध्वनिओं से
निकलूंगी बन प्रीति गीत मैं
निर्जन पर्ण- कुटी के भीतर
मैं तुलसी की सुरभि बिछाऊँगी
जला - जला घृत मृत्तिका-दीप
उत्सव हर रोज मनाऊँगी
केश - बंध को खोल - खोल मैं
जी भर थिरकूंगी , इतराऊँगी
खेलूंगी हिल-मिल हिम घाटी में
चढ़ शैलश्रिंग पर मैं गाऊँगी
महारास की सेज सजाकर
बन धवल चांदिनी बिछ जाऊँगी
लज्जित न करूँगीं हे!अतिथि देव
मैं,अभिलाषा के पर्व मनाऊँगी
अधरों पर स्वागत सौगात लिए
मैं तम तिमिर भगानें आऊँगी
अगणित स्नेहिल पंखुडियों से
गूंथ कामना की लडिओं को
उन्मुक्त व्योम की छाती पर मैं रास रचानें आऊँगी
मधु "मुस्कान "
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