भूल गए ऋतुराज मुझे क्यों
अधर बन गए प्यासे गागर
स्वप्न बीच जो भी सुन्दर था
बन न सका प्रीति का सागर
ठोकर मार भाग्य को फोडूं
या निज जीवन तज उड़जाऊँ
जीवन की इस सरस घड़ी में
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ
तेरी गंध बसी जो तन -मन
बोलो !कैसे उसे भूल मैं जाऊँ
होठ तुम्हारे छू न सकी मैं
बन तितली कैसे उड़ जाऊँ
नहीं खिल सकी कली चमेली
महक न सकी बेल बेला की
सुख गई बिन खिले मालती
क्या बात करूँ जूही मेला की
मिल न सकी छाया कदम्ब की
सावन बना चिता की ज्वाला
मीरा के अधरों से लिपटा
जीवन हुआ हलाहल प्याला
जले दिये थे करें उजाला
छलके हाथो में मधु प्याला
बनी अकिंचन भटक रही मैं
लिए ह्रदय मिलन की ज्वाला
चूम न सकी पावन अधरों को
नहीं भज सकी प्यार की माला
जीवन जला कि ये मत पूछो
कि जैसे जले सुहागन बाला
छिन -छिन लगे कि कोई जैसे
बुला रहा ले मधु कर प्याला
नखत अमावास ले कर उतरा
अपने हाथो विष का प्याला
मधु "मुस्कान "
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