मेरी नौकरी है इश्क की मोहब्बत कमाई है
तनख्वाह में मिली इक लम्बी जुदाई है
खाव्बों में सही उनसे मुलाकात हो गई
मेरे हाथो में जरा देख तेरी नाज़ुक कलाई है
बिस्तर की सलवटों से एहसास हो रहा है
मोहब्बत नें आज अपनी बरसी मनाई है
ये हिज्र भी क्या चीज है के जगाता है रात भर
एक हिज्र ही तो मेरी सारी पूँजी कमाई है
इक आवाज उभरती है दरिया की ख़मोशी से
इश्क ने ही लाखों घरों की बत्ती जलाई है
इरशाद खान भाई तुमनें ये सच लिखा है
"जब भी चलाई इश्क ने अपनी चलाई है "
मधु "मुस्कान "
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें