( ब्रिटेन की धरती से )
जब गिर- गिर दहाड़ते शैल-श्रिंग भूचाल धरा पर आता है
पड़ गए जिधर दो डग-मग पग ज्वाल विवर फट जाता है
फूँक- फूँक चलती न जवानी * झंझा तूफानों से बचकर
जब साहस अपनी ऊँगली पर पौरुष का भार उठता है
चढ़- चढ़ जुनून की छाती पर जब स्वाभिमान टकराता है
इतिहास तो क्या भूगोल युगों का पल भर में बदल जाता है
क्या हैं न पता यह तुझको मैं मूक नहीं युग बाणी हूँ
चलती जब -जब हुंकार लिए तब व्योम धरा थर्राता है
रे वर्तमान के हठी समय ! तेरा यह कैसा इंगित आवाहन
तू सम्हल जरा पौरुष अजेय द्वार खड़ा मदमाता है
* दिनकर जी की पंक्ति
मधु "मुस्कान"
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