(1)
टूट कर बिख़र जाना, है मुझे मंज़ूर लेकिन
सज़दा गुनाहों को करूँ ,यह मेरी फ़ितरत नहीं
(2)
तू अपना वज़ूद खुद अपने साये से पूंछ ले
मुझको को तेरा साया तेरे कद से बड़ा लगता है
(3)
जश्न मनाओ के रौशनी हो गई आपके घर में
घर जला तो जला मेरा ,कहीं उजाला तो हुआ
(4)
अपने जूड़ों में लगे फूलों को हटा लो तुम अब
हमने काटों से जीने का हुनर सीख लिया
(5)
न तोड़ना भूल कर भी कभी आईना तुम
वरना ख़ुद ही बिखर जाओगे तुम आईनें के बीच
(6)
ईमान मेरा मुझसे इक बात पर ख़फा है
कहता है रोज़ मुझसे तू मेरा साथ छोड़ दे
मधु "मुस्कान "
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