बिटिया तुमको बहुत बधाई
कल तू थी घर मेरे आई
(18 अक्टूबर )
बन प्रसाद तू घर आई थी , लिए पुष्प समिधा हाथो में
बसती है तू तन - मन मेरे , नंदन - कानन - उपवन में
प्रथम आगमन रुदन भरा था, अब भी तू वैसी ही लगती
रुदन तुम्हारा देख- देख कर, पीड़ा अपार होती थी उर में
वायु सुगन्धित हो जाती थी जब तू आँचल में छुपती थी
आज भी तू वैसे ही बसती है मेरे मन के झंझानिल में
तू रोज- रोज अब भी दिखती है ,मेरे घर, मन, आंगन में
रची बसी तू स्मृतिओं में है दिखती रोज मेरी हिचकी में
मौसम तेरी स्मृतिओं का , कभी हसांता कभी रुलाता
जल में, थल में,धरा गगन में , बन खूशबू बसती चन्दन में
सात संमुन्दर दूर जा बसी , अपनी यादें छोड़ यहाँ पर
लगता है तू बगल से गुजरी , मेरे दिल ,मन -मधुबन में
होती हैं यादें भी ज़ालिम , दिल छू कर तुम देख लो मेरा
आँखें मेरी भर आती हैं, जब आती हो तुम मेरी तन्हाई में
तुम्हे बधाई ,तुम्हें बधाई , कल के दिन थी तू घर आई
फूल खिलें होठों पर तेरे महक उठे तू मन घर आंगन में
तुम्हे बधाई तुम्हे बधाई
कल थी तू घर मेरे आई
मधु "मुस्कान "
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