विशालाक्षा
धनपति कुबेर के क्रोध अग्नि की
भेंट चढ़ गई निर्दोष यक्षिणीमिला यक्ष को देश निकाला
थी राजमहल में जली यक्षिणी (7)
पति वियोग की पीड़ा कितनी
बनिता की धडकन से पूछो
जिसने पल -पल में युग देखा हो
वह व्यथा विशालाक्षा से पूछो (8)
कमल पुष्प था मात्र बहाना
था कुबेर को अहं दिखाना
चढ़ गई अहं की अग्नि यक्षिणी
धनपति को था यह बतलाना (9)
अरि कुबेर के अत्याचारों से
धू -धू कर ज्वाला भडकी थी
इस ज्वाला में जली यक्षिणी
महाव्यथा बन तड्पी थी (10)
है सच यह वह गरज उठी थी
विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी
राजद्रोह के दुस्परिणामों से
हो विमुख यक्षिणी गरज उठी थी(11)
आज उसी के करूँण रुदन में¸
विरह - व्यथा का भाष्य लिखूगी
पर नाम न होगा मेघदूत
महावियोग का काव्य लिखूंगी (12)
आज उसी की अमर-कहानी
व्यक्त करूँगी झंकारों मे
आज उसी की कथा लिखूंगी
आज उसी के करूँण रुदन में¸
विरह - व्यथा का भाष्य लिखूगी
पर नाम न होगा मेघदूत
महावियोग का काव्य लिखूंगी (12)
आज उसी की अमर-कहानी
व्यक्त करूँगी झंकारों मे
आज उसी की कथा लिखूंगी
विशालाक्ष की हुंकारों में (13)
मधु "मुस्कान"
क्रमशः
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