अंजुलियों में जुगनू भर कर
नील गगन से तारे चुन कर
अंजुलियों में जुगनू भर कर
सुरसरिता का कर आवाहन
दिए प्यार के आज जलाएं
चलो धरा से तिमिर भगाएँ
सोम - सुधा का रस बरसाएँ
चलो आज हम दीप जलाएं
चलो आज हम ................ ||1 ||
भ्रमित न हों दिग्भ्रमित न हों
देख तिमिर हम व्यथित न हों
एक नहीं कितने दुशासन
मर्यादा की हम लाज बचाएं
चलो धरा से तिमिर भगाएँ
सोम -सुधा का रस बरसाएँ
चलो आज हम दीप जलाएं
चलो आज हम .................||2 ||
पग- पग पर घनघोर अँधेरा
काम क्रोध का हुआ बसेरा
अत्याचारों की इस धरणी पर
लिख विहान की नव परिभाषा
चलो धरा से तिमिर भगाएँ
सोम -सुधा का रस बरसाएँ
चलो आज हम दीप जलाए
चलो आज हम दीप जलाएं||3 ||
मार्ग सत्य का हुआ तिरोहित
बना आज अन्याय पुरोहित
कलम न्याय की कुंद हो गई
चलो न्याय की धार चढ़ाऍ
न्याय देवता को समझाएं
सोम -सुधा का रस बरसाएँ
चलो आज हम दीप जलाएं
चलो आज हम दीप जलाएं||4 ||
ढूँढा बहुत परन्तु मिला क्या
नहीं ठिकाना सत्य न्याय का
मंदिर मस्जिद संग्राम हो गए
चलो धर्म पर लिख मानवता
हम मानवता का पाठ पढ़ाएं
सोम - सुधा का रस बरसाएँ
चलो आज हम दीप जलाएं
चलो आज हम ..................||5 ||
मोमिन पंडित हथियार हो गये
घर ही ख़ुद में दीवार हो गए
मान प्रतिष्ठा की बदली भाषा
कर मर्यादा के दीप प्रज्वलित
गीता कुरान का मर्म बताएं
सोम - सुधा का रस बरसाएँ
चलो आज हम दीप जलाएं
चलो आज हम दीप ..............||6 ||
छल कपट हो रहे महिमामंडित
ये गीता कुरान के सार हो गए
लगा मुखौटा अपने मुह पर
हम खुद में ही भगवान् हो गए
क्यों न आज ख़ुद को समझाएं
सोम - सुधा का रस बरसाएँ
चलो आज हम दीप जलाएं
चलो आज हम ...................||7 ||
मधु "मुस्कान "
वाह...उत्तम भाव...दीपावली की शुभकामनाएं.....
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