अग्नि सरीखे पगडण्डी पर
विरही चकई की अश्रु धार सी
अपनी ही आँखों से टप-टप कर
मैंने तुमको गिरते देखा है
गिर-गिर कर उठते देखा है
उठ-उठ कर गिरते देखा है ||1 ||
विरह अग्नि की व्यथा समेटे
ध्वनि विहीन नंगें पावों से
निशाकाल की छाती पर
मैनें तुमको चलते देखा है
मैनें तुमको गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||2 ||
एक नहीं कितनी रातों को
मरुथल की तपती छाती पर
भीषण ज्वाल सी तप्त रेत पर
तड़प-तड़प कर चलते देखा है
मैंने तुमको गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||3 ||
ले दावानल की मर्माहत पीड़ा
त्याग निलय की मोह व्यथा को
गिरि गह्वर के द्वार -द्वार पर
व्यथा -कथा कहते देखा है
तुमको मैंने गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||4 ||
त्ररयम्बकेश्वर की तीसरी आँख से
निकली महाकाल की ज्वाला में
पल -पल तुमको जलते देखा है
जल-जल कर मरते देखा है
मैंने तुमको गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||5 ||
खजुराहों की प्रतिमाओं में
शंकर के त्रिशूल के ऊपर
शीर्ष नुकीले मध्य भाग पर
तुमको मैंने चलते देखा है
मैंने तुमको गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||6 ||
हिम शिखरों के विस्तृत वितान पर
भीषण जाड़ों की मध्य रात्री में
निर्जन वन उपवन के भीतर
अपने से ही बतियाते देखा है
मैंने तुमको गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||7||
ज्वालामुखी के शीर्ष विवर पर
लावा की भीषण ज्वाला में
मैंने तुम्हे पिघलते देखा है
मैंने तुमको जलते देखा है
मैंने तुमको गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||8||
फिसलन भरी जमीन सरीखे
हरित कांति के शैवालों पर
मैंने तुम्हें फिसलते देखा है
सम्हाल -सम्हल कर चलते देखा है
मैंने तुमको गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||9 ||
बन कस्तूरी मृग सा पागल
मादक रस में जलने वाले
अपने ही आगे पीछे
मति भ्रमित तुम्हे होते देखा है
मैनें तुमको गिरते देखा है
गिर -गिर कर उठते देखा है ||10 ||
बाबा नागार्जुन के चरणों में
उन्ही का अनुकूलन मधु "मुस्कान"
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