विशालाक्षा
गले लगा हंसिनी को अपने
विशालाक्षा फफ़क पड़ी
देख यक्ष के मन-बिम्बों को
ज्वाला उर की भड़क पड़ी
बड़े प्यार से लगी वो कहने
सुनो विरहिणी सुनो हंसिनी
चित्रकूट जाना है तुमको
है पता राह का तुझे हंसिनी !
बोल पड़ी तत्काल हंसिनीं
नहीं नहीं मैं नहीं जानती
कहाँ किधर किस ठौर बसा है
मैं देश- दिशा तक नहीं जानती
नयन -सेज पर उसके आँसूं
अश्रु -रुदन का भास्य बन गए
अश्रु -रुदन का भास्य बन गए
अविरल प्रवाह की धार सरीखे
जीवन का पर्याय बन गये
रोक अश्रु वह बोल पड़ी
राह -डगर मैं दिखला दूंगीं
मंज़िल दूर कठिन हैं लेकिन
आकाश मार्ग मैं बतला दूंगीं
सुनो ध्यान से बात हंसिनीं
बालक रवि के आने से पहले
ले ब्रत तुम गंतव्य का अपनें
चलना पूरब की लाली से पहले
कर प्रणाम भोले शिव को तुम
ले माँ पार्वती के चरण धूल को
चल पड़ना तुम ब्रम्हमुहूर्त में
कर कोटि नमन शिव के त्रिशूल को
पथ कंटक से मुक्त न होगा
पग-पग पर अपार संकट होगा
गर्ज़न मेघ का भीषण होगा
कहीं धवल तड़ित नर्तन होगा
झंझावातों का ताण्डव होगा
नभ विचरित यामिनी होगी
तुहिन कणों के माथो पर
चंचल चपल दामिनी होगी
पर मार्ग तेरा अवरुद्ध न होगा
मलयानिल भी क्रुद्ध न होगा
झंझानिल की ध्वनिया होंगी
भीषण गर्ज़न नर्तन होगा
मधु "मुस्कान
क्रमशः .............
ले माँ पार्वती के चरण धूल को
चल पड़ना तुम ब्रम्हमुहूर्त में
कर कोटि नमन शिव के त्रिशूल को
पथ कंटक से मुक्त न होगा
पग-पग पर अपार संकट होगा
गर्ज़न मेघ का भीषण होगा
कहीं धवल तड़ित नर्तन होगा
झंझावातों का ताण्डव होगा
नभ विचरित यामिनी होगी
तुहिन कणों के माथो पर
चंचल चपल दामिनी होगी
पर मार्ग तेरा अवरुद्ध न होगा
मलयानिल भी क्रुद्ध न होगा
झंझानिल की ध्वनिया होंगी
भीषण गर्ज़न नर्तन होगा
मधु "मुस्कान
क्रमशः .............
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