विशालाक्षा
स्वागत अभिनंदन भी होगा
पथ पथिक और सब देव मिलेंगें
मार्ग नया होगा अनजाना
नभचर नए अनेक मिलेंगें
मन में हो गंतव्य तुम्हारा
मात्र यक्ष हो लक्ष्य तुम्हारा
नहीं कहीं तुम राह भटकना
हो पावन गंतव्य तुम्हारा
छोड़ मोह माया की दुनिया
अपलक हो गंतव्य तुम्हारा
श्रवण मास आने के पहले
हो सम्पूरण मंतव्य तुम्हारा
चल कैलाश पहुचना काशी
विश्वनाथ के दर्शन करना
ले पुनः चरण रज़ शंकर के
माँ गंगे का पूजन करना
सांध्य आरती की बेला में
जब गर्जन हो घंट -घडे का
साथ साथ तुम भोले शिव के
नृत्य तांडव अविरल करना
कशी के घाटों पर चल- चल
दिव्य ज्योति के दर्शन करना
मधु मिश्रित समिधा ले तुम
पूजन नमन हवन करना
तीन लोक में न्यारी काशी
हैं बसे जहाँ साधू सन्यासी
धूल वहां की लगा के माथे
बन जाना उनके उर वासी
जलाभिषेक शिव का करना
संकट मोचन के दर्शन करना
कशी की पावन नगरी में
प्रेम भाव सब अर्पित कारना
मधु "मुस्कान"
क्रमशः.....
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