पोल ढ़ोलके खोल रहा है
खडवा चन्दन मधुरी बाणी , देखो कैसे बोल रहा है
दगाबाज की यही निशानी ,भेष बदल कर डोल रहा है
बन छलिया हैं रास रसाता,अपने को कांधा बतलाता
बना-बना कर नये बहाने , झूंठ हज़ारों बोल रहा है
है शेषनाग के फन पर बैठा ,पता नहीं उस ढोंगी को
कहता है ख़ुद को वह ब्रह्मा, उची बोली बोल रहा है
बनता बड़ा भविष्य का ग्यानी, चेहरा उसका तो देखो
माथे लगा के रोली अक्षत, वह कंचुक पट खोल रहा है
एक नहीं कितने आश्रम हैं तीर घाट से मीर घाट तक
तेरा बापू मेरा बापू सबका बापू ,कैसी बोली बोल रहा है
हो गई आज खंडित महिमा,मर्यादा की नाक कट गयी
जय हो उस हिम्मत की जो पोल ढ़ोल के खोल रहा है
हया शर्म को आग लगा . खेल खिलाड़ी खेल रहा है
बातें करता ऊँची -ऊँचीं , खाल ओढ़ कर बोल रहा है
मधु "मुस्कान"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें