अश्रु मेरे दृग तेरे थे
स्मृतिओं की घाटी में
लिए बचन के फेरे थे
महातिमिर की बेला में
तुमने ही दिए सवेरे थे ||1||
महाकाल जब गरज उठा था
जब क्रंदन के अश्रु बहे थे
जब-जब जली भूख की ज्वाला
तुमने ही दिए बसेरे थे ||2||
है रची बची स्मृतिओं में
जब जिवन विस्फोट बना था
उस महाशीत की बेला में
दुःख मेरे सब तेरे थे ||3 ||
जब -जब जली व्यथा की ज्वाला
जब मेघ फटा मेरी छाती पर
क्या याद नही है मुझको सब
अश्रु मेरे द्रिग तेरे थे
सौरभ सुरभित केशों पर
अंगुलिओं के फेरे थे
मधु "मुस्कान"
स्मृतिओं की घाटी में
लिए बचन के फेरे थे
महातिमिर की बेला में
तुमने ही दिए सवेरे थे ||1||
महाकाल जब गरज उठा था
जब क्रंदन के अश्रु बहे थे
जब-जब जली भूख की ज्वाला
तुमने ही दिए बसेरे थे ||2||
है रची बची स्मृतिओं में
जब जिवन विस्फोट बना था
उस महाशीत की बेला में
दुःख मेरे सब तेरे थे ||3 ||
जब -जब जली व्यथा की ज्वाला
जब मेघ फटा मेरी छाती पर
क्या याद नही है मुझको सब
अश्रु मेरे द्रिग तेरे थे
सौरभ सुरभित केशों पर
अंगुलिओं के फेरे थे
मदिरारूण आँखों में तूने
मेरे ही चित्र उकेरे थे ||5 ||
मेरे ही चित्र उकेरे थे ||5 ||
सुरभित कुंतल पर मृदुल भाव
संख सरीखे सुघड़ गले में
नीलकंठ की माला डाले
तुमने ही दिए सबेरे थे ||6||
जब बक्ष भेद शल-शूल चुभे थे
अश्रु मेरे जब लहू बने थे
तब -तब मेरे छाती पर
तेरे बांहों के घेरे थे ||7 ||
संख सरीखे सुघड़ गले में
नीलकंठ की माला डाले
तुमने ही दिए सबेरे थे ||6||
जब बक्ष भेद शल-शूल चुभे थे
अश्रु मेरे जब लहू बने थे
तब -तब मेरे छाती पर
तेरे बांहों के घेरे थे ||7 ||
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