शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

16.Madhu Singh : Mat Poocho

  












मत पूछो 



दर्द  दिया अपनों ने कितना  मत पूछो अब चुप भी हो जाओ 
जल-जल राख हुआ करती हूँ बन आंशू बस बहती रहती हूँ 

सोचा क्या था  सब कैसे कह दूँ चाहत थी या उसकी  नफ़रत 
रेत ,घरौदा, सागर, लहरें  बन बस मै अब बिखरा  करती  हूँ 

हो चुप  दर्पण भी नाराज हो गया   मुश्किल है अब मेरा जीना
अपना चेहरा ढक अपने ही  हाथो  बस मै अब रोया करती हूँ

सपने भी खामोस हो गए क्या सुबह नहीं होगी अब जीवन में
बुला मौत को घर अपने मै बस उससे ही अब खेला कारती हूँ 

दोस्त मेरे सब दुश्मन हो गए खुद बन  गइ मै  अपनी सौतन 
देख ज़माने की नफ़रत मत पूछों  बस मै अब रोया करती हूँ

 अब  शब्द मेंरे ख़ामोश  हो  गए  भाव  सभी स्तब्ध  हो गए
आँखे अपनी बंद किए मै बस  होठो  को अब  सीया करती हूँ

                                                                मधू "मुस्कान"


   


 

6 टिप्‍पणियां:

  1. Very Nice
    सपने भी खामोस हो गए क्या सुबह नहीं होगी अब जीवन में
    बुला मौत को घर अपने मै बस उससे ही अब खेला कारती हूँ

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  2. sundar auy vyatha ko rekhankit karti prastuti,dard aur vytha-katha ka dastavej>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>"सोचा क्या था सब कैसे कह दूँ चाहत थी या उसकी नफ़रत
    रेत ,घरौदा, सागर, लहरें बन बस मै अब बिखरा करती हूँ ........"

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  3. bahut sundar aur gambhir bhavo ki abhivyakti
    दर्द दिया अपनों ने कितना मत पूछो अब चुप भी हो जाओ
    जल -जल राख हुआ करती हूँ बन आंशू बस बहती रहती हूँ

    सोचा क्या था सब कैसे कह दूँ चाहत थी या उसकी नफ़रत
    रेत ,घरौदा, सागर, लहरें बन बस मै अब बिखरा करती हूँ

    हो चुप दर्पण भी नाराज हो गया मुश्किल है अब मेरा जीना
    अपना चेहरा ढक अपने ही हाथो बस मै अब रोया करती हूँ

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  4. Bahut Khoob****^^^^^^***** मुश्किल है अब मेरा जीना?".........सपने भी खामोस हो गए क्या सुबह नहीं होगी अब जीवन में बुला मौत को घर अपने मै बस उससे ही अब खेला कारती हूँ............"

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  5. सोचा क्या था सब कैसे कह दूँ चाहत थी या उसकी नफ़रत
    रेत ,घरौदा, सागर, लहरें बन बस मै अब बिखरा करती हूँ

    हो चुप दर्पण भी नाराज हो गया मुश्किल है अब मेरा जीना
    अपना चेहरा ढक अपने ही हाथो बस मै अब रोया करती हूँ

    लाजवाब!

    सादर

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  6. सोचा क्या था सब कैसे कह दूँ चाहत थी या उसकी नफ़रत
    रेत ,घरौदा, सागर, लहरें बन बस मै अब बिखरा करती हूँ
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    nice

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