सजन
निगाहों से जी भर- भर कर मुझको पिलाया
कभी बाँहों में भर- भर के मुझको सताया
जिश्म को पोर को छू -छू कर चंदन बनाया
सताया बहुत मुझको पाकर अकेले में तुमने
कभी जुल्फें सवारीं तो कभी आँचल उड़ाया
सितम कितने ढाए कितना दिल को रुलाया
कभी मेहंदी रचाया तो कभी बिंदियाँ सजाया
दिल के तारों को तुमने कितना छेड़ा बहक कर
कभी पायल उतारी तो कभी नथुनी सजाया
भोले दिखने में सजन तुम तो लगते बहुत हो
कितना शातिर सजन मेरा जो मुझको है भाया
म "मुस्कान"
जवाब देंहटाएंदिल के तारों को तुमने कितना छेड़ा बहक कर
कभी पायल उतारी तो कभी नथुनी सजाया
मोहतरमा कल भी इस पोस्ट पे टिपण्णी की थी देखिये खान्ग्रेसी स्पैम में होगी,जल्दी कीजिए ,स्पैम निगल न जाए .शुक्रिया मेरे ब्लॉग पे आने का इबारत लिख जाने का .
जवाब देंहटाएंसजन
सजन तुमने ही तो हमको शराबी बनाया
निगाहों से जी भर- भर कर मुझको पिलाया
कभी बाँहों में भर- भर के मुझको सताया
जिस्म को पोर को छू -छू कर चंदन बनाया
सताया बहुत मुझको पाकर अकेले में तुमने
कभी जुल्फें सवारीं तो कभी आँचल उड़ाया
सितम कितने ढाए कितना दिल को रुलाया
कभी मेहंदी रचाया तो कभी बिंदियाँ सजाया
दिल के तारों को तुमने कितना छेड़ा बहक कर
कभी पायल उतारी तो कभी नथुनी सजाया
भोले दिखने में सजन तुम तो लगते बहुत हो
कितना शातिर सजन मेरा जो मुझको है भाया
मधू "मुस्कान"
अनुभूतियों का शब्दों का पैरहन ही नहीं जिस्म मुहैया करवाया है कवियित्री बहुत सुन्दर रचना .
हृदय की श्रेष्ठतम भावनाओं से निसृत उदगार हैं यह .बधाई करवा चौथ की .
जवाब देंहटाएंसजन
जवाब देंहटाएंसजन तुमने ही तो हमको शराबी बनाया
निगाहों से जी भर- भर कर मुझको पिलाया
कभी बाँहों में भर- भर के मुझको सताया
जिस्म को पोर को छू -छू कर चंदन बनाया
सताया बहुत मुझको पाकर अकेले में तुमने
कभी जुल्फें सवारीं तो कभी आँचल उड़ाया
सितम कितने ढाए कितना दिल को रुलाया
कभी मेहंदी रचाया तो कभी बिंदियाँ सजाया
दिल के तारों को तुमने कितना छेड़ा बहक कर
कभी पायल उतारी तो कभी नथुनी सजाया
भोले दिखने में सजन तुम तो लगते बहुत हो
कितना शातिर सजन मेरा जो मुझको है भाया
मधू "मुस्कान"
अनुभूतियों का शब्दों का पैरहन ही नहीं जिस्म मुहैया करवाया है कवियित्री बहुत सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंसजन
सजन तुमने ही तो हमको शराबी बनाया
निगाहों से जी भर- भर कर मुझको पिलाया
कभी बाँहों में भर- भर के मुझको सताया
जिस्म को पोर को छू -छू कर चंदन बनाया
सताया बहुत मुझको पाकर अकेले में तुमने
कभी जुल्फें सवारीं तो कभी आँचल उड़ाया
सितम कितने ढाए कितना दिल को रुलाया
कभी मेहंदी रचाया तो कभी बिंदियाँ सजाया
दिल के तारों को तुमने कितना छेड़ा बहक कर
कभी पायल उतारी तो कभी नथुनी सजाया
भोले दिखने में सजन तुम तो लगते बहुत हो
कितना शातिर सजन मेरा जो मुझको है भाया
मधू "मुस्कान"
अनुभूतियों का शब्दों का पैरहन ही नहीं जिस्म मुहैया करवाया है कवियित्री बहुत सुन्दर रचना .
हमारी टिप्पणियाँ स्पैम बोक्स में जा रहीं हैं निकालें उन्हें आप .शुक्रिया भाई जान इस जानकारी को साझा करने के लिए .
मोहतरमा स्पैम से टिपण्णी निकालें हमारी प्लीज़ .
जवाब देंहटाएंसितम कितने ढाए कितना दिल को रुलाया
जवाब देंहटाएंकभी मेहंदी रचाया तो कभी बिंदियाँ सजाया
Dil ko jhkjhor dene vali gazal, badhayee madhu ji, दिल के तारों को तुमने कितना छेड़ा बहक कर
कभी पायल उतारी तो कभी नथुनी सजाया
भोले दिखने में सजन तुम तो लगते बहुत हो
कितना शातिर सजन मेरा जो मुझको है भाया
बहुत खूब .....जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
जवाब देंहटाएंआपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
जवाब देंहटाएंमस्त भावाव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
behtareen...
जवाब देंहटाएंaapne to sajan ke liye dil hi nikal kar rakh diya..:)
कभी बाँहों में भर- भर के मुझको सताया
जवाब देंहटाएंजिस्म के पोर-पोर को छू कर चंदन बनाया
सुन्दर अभिव्यक्ति
इस ब्लाग को फॉलो करने का माध्यम बनाइये
जवाब देंहटाएंरोमांच कारी पुलक और स्पर्श की आंच को शब्दों में ढ़ाल दिया है .शुक्रिया आपकी मेरे लिए महत्वपूर्ण टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंmarmsparshi prastuti,badhayee
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