दिल बगावत पे उतर आया हुश्न दिख जानें के बाद
फ़तवा जेहाद का जारी हुआ इश्क टकराने के बाद
यूँ भटकता रह गया मैं कभी इस हरम कभी उस हरम
क्या कहें क्या - क्या सहा जख्म खिल जाने के बाद
हाय ! ये हुश्न की कारीगरी औ इश्क की बाजीगरी
जख्म सारे सिल गए आगोश में आने के बाद
ख्वाब को मंजिल मिली एहसास को मकसद मिला
जिश्म की दहलीज़ पर कुछ यूँ फ़िसल जानें के बाद
कुछ हुश्न का जल्वा रहा कुछ इश्क का रहा मर्तबा
अश्क भी निकले नहीं घर खाक जाने के बाद
कुछ यूँ जला मैं मोम सा राख़ बन कुछ यूँ उड़ा
आशिकी की आग़ में हर ख्वाब जल जाने बाद
मधु "मुस्कान"
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