लिए हाथ मैं रंग तूलिका माँ का चित्र बनाऊँगी
मातु भारती के चरणों में , मैं अपना शीश नवाऊँगी
चन्दन , कुमकुम, रोली, अक्षत ले पूजा की थाली में
आँचल में भर उषः लालिमा मैं पूजा करनें जाऊँगी
नहीं बहेगा खून धरा पर नहीं खिचेंगीं तलवारें अब
तलवारों की धारों पर मैं सत्य अहिंसा लिख आऊँगी
स्वागत अभिनन्दन में माँ के गीत एक मैं नया लिखूँगी
जन गण मन का माधुर्य लिए मैं नंदन कानन में गाऊँगी
पीड़ा न दिखेगी अधरों पर खुशियाँ होंगीं दुःख दर्द न होगा
मैं , भेद भाव विद्रोह घृणा की दीवारों को गिराने आऊँगी
दुनियाँ न दहलनें दूंगीं मैं, गोलों बम तोपों के धमाकों से
मज़हब की पगडण्डी को मानवता की राह दिखाने आऊँगी
अब न जलेगी बेटी कोई अश्रु न होंगें माँ की आँखों में
कैद हुई प्यारी मुनियों को मैं पिजरों से उड़ानें आऊँगी
मंडल और कमंडल की अब साजिस न दिखेगी धरती पर
कर्म योग गीता पढ़-पढ़ मैं नव गीत सुनानें आऊँगी
ग्रंथी ,पंडित , मोमिन और पादरी अब न भिड़ेगें आपस में
धर्म संघ के ठेकेदारों को मैं मानवता का पाठ पढानें आऊँगी
साधु संत सन्यासी के चिमटों से अब न उठेगी चिंगारी
आग जल रही नफ़रत की जो मैं उसे बुझाने आऊँगी
राम रहीम कबीरा के संदेशों को ,लिए हाथ मैं रंग तुलिका
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे औ चर्चों पर लिखने आऊँगी
जो पूजा के फूल बेच दे थाली को बदनाम करे
ऐसे बहुरुपिओं को मैं, मंदिर दरगाहों से भगानें आऊँगी
मधु "मुस्कान"
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