गुरुवार, 1 नवंबर 2012

5.Madhu singh :aag


  आग 

 लगायी  आग  तन -बदन में जो इस बार बेईमान सावन ने 
 सजन तुम चुपके से आ  जिश्म से ले रूह  तक  उतर जाओ 

अब  सही जाती  नहीं वर्षात , सजन कुछ  कर गुज़र जाओ 
सम्हालू कैसे नाज़ुक दिल को अपने मै, अब तुम चले जाओ

गुल  भी अब बन खार बेहद चुभने लग गए हैं  न जाने क्यों 
जमाना पगली-पगली कह बुलाने लग गया है सुन तो जाओ 

बुला कर कोयलें सब  मुझको  वो  बेझिझक  यह कहने लगीं 
बन चकोरी आज तुम  बस  चकवे की बस्ती उड़ चली जाओ 

दिल की  धड्कन को तुझे  कैसे सुनाऊँ ऐ  मेरे शर्मीले सजन
चुप-चाप मेरे करीब आ तूँ जिश्मे अन्जुमन में बिखर जाओ 

                                                           मधू "मुस्कान"
 



5 टिप्‍पणियां:

  1. Madhu singh :aag


    आग

    लगायी आग तन -बदन में जो इस बार बेईमान सावन ने
    सजन तुम चुपके से आ जिस्म से ले रूह तक उतर जाओ

    अब सही जाती नहीं बरसात , सजन कुछ कर गुज़र जाओ
    सम्भालु कैसे नाज़ुक दिल को अपने मैं , अब तुम चले जाओ

    गुल भी अब बन खार बेहद चुभने लग गए हैं न जाने क्यों
    ज़माना पगली-पगली कह बुलाने लग गया है सुन तो जाओ

    बुला कर कोयलें सब मुझको वो बेझिझक यह कहने लगीं
    बन चकोरी आज तुम बस चकवे की बस्ती उड़ चली जाओ

    दिल की धड़कन को तुझे कैसे सुनाऊँ ऐ मेरे शर्मीले सजन
    चुप-चाप मेरे करीब आ तू जिस्मे अन्जुमन में बिखर जाओ

    मधु "मुस्कान"
    बढ़िया रचना है मधुजी .मुबारक !चिट्ठे पे आपका आना ,आके फिर टिपियाना ,
    अच्छा लगा .
    काम बहादुरी जी (अन्नपूर्णा को आपने गौरवान्वित किया है .रसोई घर क्या ,घर के हर कौने में आप ही आप हैं ,आपका करीना है ,घर के प्रति प्यार है .सलामत रहो .आबाद रहो .घर -विशाला .

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

    जवाब देंहटाएं