जलियाँ वाले बाग के किस्से रोज़ यहाँ दोहराते हैं
बैठ सिंघासन दील्ली के कुएं मौत के खोदवाते हैं
कहीं धर्म के नाम पे दंगा ,कहीं आग लगवाते हैं
माननीय का लगा मुखौटा ए सब कुछ करवाते हैं
कहीं लगाते जिश्म की मंडी ,कहीं खून करवाते हैं
कहीं जलाते माँ - बेटी को, कहीं बहू जलवाते हैं
हाथ सने हों खून से जिनके , मंत्री पद दिलवाते हैं
सुबह खेलते खून की होली, रात दिए बुझवाते हैं
घर इनके हम्माम बन गए, नंगें खेल करवाते हैं
बुला घरों पर बहू बेटियाँ चीर हरण करवाते हैं
नख इनके कानून बन गए ,रोज नाक कटवाते हैं
ऊँगली उठाते माँ सीते पर,जेल राम को भेजवाते हैं
घूस बनी इनकी रामायण ,रोज पाठ करवाते हैं
चिता लगाते मर्यादा की , इज्ज़त को लुटवाते हैं
लगा तिलक माथे पर अपने घंटों पूजा करवाते हैं
उमर हो गई अस्सी की ,घर उन्निस की बुलवाते हैं
शर्म नहीं इन बेशर्मों को ,ए सब कुछ करवाते हैं
पहले करते खेल जिश्म से, फिर हत्या करवाते हैं
मधु " मुस्कान"
शर्म नहीं इन बेशर्मों को ,ए सब कुछ करवाते हैं
पहले करते खेल जिश्म से, फिर हत्या करवाते हैं
मधु " मुस्कान"
सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंलगा तिलक माथे पर अपने घंटों पूजा करवाते हैं
जवाब देंहटाएंउमर हो गई अस्सी की ,घर उन्निस की बुलवाते हैं,,,,,
RECENT POST... नवगीत,
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
बढ़िया तंज इस बदजात व्यवस्था पर राजनीति के धंधे बाजों पर
जवाब देंहटाएंशर्म नहीं इन बेशर्मों को ,ए सब कुछ करवाते हैं
पहले करते खेल जिश्म से, फिर हत्या करवाते हैं
शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
(सिंह आसन -,दिल्ली ,खुद्वातें हैं ,ये /यह सब कुछ करवाते हैं ,जिस्म ,हमाम ,भिजवाते ,)
घूस बनी इनकी रामायण ,रोज पाठ करवाते हैं
जवाब देंहटाएंचिता लगाते मर्यादा की , इज्ज़त को लुटवाते हैं
लगा तिलक माथे पर अपने घंटों पूजा करवाते हैं
उमर हो गई अस्सी की ,घर उन्निस की बुलवाते हैं----बहुत खुबसूरत प्रस्तुति
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सच तो यही है...
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