नया माहताब निकला है
अज़ब सी ताज़गी लगती है शुर्ख होठों पर
आरज़ू चाह तलब ज़ंजीर तौक़ गहना है
वफ़ा की शौक़ में ख़ुद को ख़ाक कर देना
तलब फ़िज़ूल है काटों का ताज़ पहना है
उफ़क पे कहीं नया माहताब निकला है
दीद -उम्मीद की तड़प का क्या कहना है
ज़नाज़ा ख्वाहिशों का दर से तेरे निकला है
आशिके- दिले- मज़ार में शैदाई बन रहना है
तेरी आँखों में समाई है सुहानी मौत की रात
आज की रात मातम का जश्न करना है
मधु "मुस्कान
तेरी आँखों में समाई है सुहानी मौत की रात
आज की रात मातम का जश्न करना है
मधु "मुस्कान
बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदरअभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदरअभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गजल "इश्क जब मेहरबान होता है,तब
जवाब देंहटाएंख़ुदा मेज़बान होता है ,एक दुनिया है अलग आशिकी की ,दिल ख्वाहिशों का माकन होता है ....
तेरी आँखों में समाई है सुहानी मौत की रात
जवाब देंहटाएंआज की रात मातम का जश्न करना है- VAH KYA BAAT HAI !
latest post: बादल तू जल्दी आना रे!
latest postअनुभूति : विविधा
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंज़नाज़ा ख्वाहिशों का दर से तेरे निकला है
आशिके- दिले- मज़ार में शैदाई बन रहना है
क्या कहना है अशआर का .बेहतरीन अंदाज़े बयान ,अलफ़ाज़ में ताजगी सी लिए .
(सुर्ख ,...)
बहुत -बहुत सुन्दर रचना , माहताब की तरह ही
जवाब देंहटाएंबहुत खूब... बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं"तेरी आँखों में समाई है सुहानी मौत की रात
जवाब देंहटाएंआज की रात मातम का जश्न करना है"
वाह वाह