ज़लील -सी गाली
(दुष्यन्त के नाम )
लाखों कटीली झाड़ियाँ , उग गई हैं जिश्म पर
तू एक ज़लील - सी गाली से कम हसींन नहीं
इश्तिहारों की तरह तुम लटकी हो कील पर
तुझे यकीन नहीं कि तेरे पावों तले ज़मीन नहीं
सारे ज़मीर लुट गये , जिश्म के बाज़ार में
आस्तीन ही तेरी साँप है, अब वो आस्तीन नहीं
काग़ज़ पे ज़िन्दगी की जो तस्बीर उभरती है
लगता है कि तू कमीनो से कम कमीन नहीं
चुभ गए काँटें घृणा के , पाकीजगी के वक्ष में
तू , तेरी दुनियाँ, ईम़ा तेरा,दोज़ख से बेहतरीन नहीं
मधुर "मुस्कान "
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
खुश कीत्ता
सादर
....क्या कहने, बेहद उम्दा गजल
जवाब देंहटाएंजरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल ,आक्रामक और धारदार तेवर " खिड़कियाँ नाचीज़ गलिओं से मुखातिब हैं ,अब लपट शायद बगल के घरों तक है जा पहुंची ....
जवाब देंहटाएंक्या कहने, बेहद उम्दा गजल
जवाब देंहटाएंwah ! behtareeen.....
जवाब देंहटाएंवाह! क्या खूब ग़ज़ल कही आपने | आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल सुंदर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (02-06-2013) मुकद्दर आजमाना चाहता है : चर्चा मंच १२६३ में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सारे ज़मीर लुट गये , जिश्म के बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआस्तीन ही तेरी साँप है, अब वो आस्तीन नहीं bahut khoob ....
चुभ गए काँटें घृणा के , पाकीजगी के वक्ष में
जवाब देंहटाएंतू , तेरी दुनियाँ, ईम़ा तेरा,दोज़ख से बेहतरीन नहीं
बेहतरीन !
बहुत-बहुत सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंविभत्स रस.....
जवाब देंहटाएंसारे ज़मीर लुट गये , जिश्म के बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआस्तीन ही तेरी साँप है, अब वो आस्तीन नहीं,,,
बहुत सुंदर गजल ,,
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंसारे ज़मीर लुट गये , जिश्म के बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआस्तीन ही तेरी साँप है, अब वो आस्तीन नहीं,,,
बहुत सुंदर गजल .सादर..
काग़ज़ पे ज़िन्दगी की जो तस्बीर उभरती है
जवाब देंहटाएंलगता है कि तू कमीनो से कम कमीन नहीं----
अदभुत-- मन से निकली सच्ची और सटीक बात
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है पढें
तपती गरमी जेठ मास में---
http://jyoti-khare.blogspot.in
लाखों कटीली झाड़ियाँ , उग गई हैं जिश्म पर
जवाब देंहटाएंतू एक ज़लील - सी गाली से कम हसींन नहीं
अदभुत, उत्कृष्ट प्रस्तुति
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
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