हाथ बढ़ा कर माँग लिया था
हाथ बढ़ा कर माँग लिया था, चाबी मेरे दिल की तुमने
ओढ़ प्यार की धानी चूनर , थाम लिया था दामन तुमने
कभी हकीकत सी लगती थी, कभी ख्वाब सी दिखती थी
बड़े प्यार से मिला के नज़रें झुका लिया था नजरें तुमने
मेघ सरीखे तुम दिखती थी, सावन की काली रातों में
बिन बादल वर्षात हुई थी ,दस्तक जब-जब दी थी तुमने
मेरे दिल के मरुथल में प्यास की ज्वाला जब-जब धधकी
तब- तब बन प्यार की सरिता प्यास बुझाई थी तुमने
जीवन के झंझावातों में जब - जब बिजली कड़की थी
बाँहों में भर - भर कर मुझको, रात बिताई थी तुमने
तन्हाई ने जब - जब घेरा, गुमनामी की ओढ़ के चादर
जीवन के अँधियारे में , थी ज्योति जलाई तब -तब तुमने
जब -जब नीद ने रिश्ता तोड़ा अश्क बने थे बिस्तर मेरे
भर - भर के आगोश अपने, नींद बुलाई थी तुमने
मधु "मुस्कान"
मेघ सरीखे तुम दिखती थी, सावन की काली रातों में
जवाब देंहटाएंबिन बादल वर्षात हुई थी ,दस्तक जब-जब दी थी तुमने
बढ़िया रूपक तत्व लिए है यह रोमांटिक रचना .प्रेम का अनूठा अनुष्ठान लिए .
बेहतरीन भाव ,खूबशूरत प्रस्तुति , हाथ बढ़ा कर माँग लिया था, चाबी मेरे दिल की तुमने
जवाब देंहटाएंओढ़ प्यार की धानी चूनर , थाम लिया था दामन तुमने
कभी हकीकत सी लगती थी, कभी ख्वाब सी दिखती थी
बड़े प्यार से मिला के नज़रें झुका लिया था नजरें तुमने
मेघ सरीखे तुम दिखती थी, सावन की काली रातों में
बिन बादल वर्षात हुई थी ,दस्तक जब-जब दी थी तुमने
मेरे दिल के मरुथल में प्यास की ज्वाला जब-जब धधकी
तब- तब बन प्यार की सरिता प्यास बुझाई थी तुमने
जीवन के झंझावातों में जब जब बिजली कड़की थी
बाँहों में भर- भर कर मुझको, रात बिताई थी तुमने
तन्हाई ने जब - जब घेरा गुमनामी की ओढ़ के चादर
जीवन के अँधियारे में , थी ज्योति जलाई तब -तब तुमने
जब -जब नीद ने रिश्ता तोड़ा अश्क बने थे बिस्तर मेरे
भर - भर के आगोश अपने, नींद बुलाई थी तुमने
Very Nice Madhuji
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जवाब देंहटाएंअभिसारिका का रोमांच /रोमांस लिए रहती है आपकी रचना ,प्रेमिका मुग्धा नायिका सी ....
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
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जवाब देंहटाएंजब -जब नीद ने रिश्ता तोड़ा अश्क बने थे बिस्तर मेरे
भर - भर के आगोश अपने, नींद बुलाई थी तुमने
क्या बात है इस शिखर अभिव्यक्ति के .
behtareen
जवाब देंहटाएंवाकई, उम्दा प्रस्तुति
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