शनिवार, 4 मई 2013

मधु सिंह : ख़ुद की तलाश में

   ख़ुद की तलाश में 



 जाने  कहाँ  ले  जायगी  ये  पालकी मुझे 
 आँखों   के   मैकदे   जरा  खोल   दीजिए 

 निकली हूँ  आज सज़  मैं घर से अकेली  
 राज़  सारे  दिल  के  जरा  खोल  दीजिए 

 मैं ख़ुद से दूर हो गयी  ख़ुद की तलाश में 
 मेरे  पते को  अपना  पता  बोल  दीजिए

मेरे   खयाल   मेरे  ही   मेहमान  बन गए
मेरे ख़यालों को बस  अपना  नाम दीजिए

आँखों  से  कहीं  दूर है उल्फ़त की रोशनी 
उल्फ़त के चरांगों  को  जलने  तो दीजिए

मौसम  का  इशारा  है  चूम लो आँखों को
पत्थर नहीं हूँ मोम हूँ जरा छू तो लीजिए 

तुमने मेरा काटों सज़ा  बिस्तर नहीं देखा 
दो  चार  पल  ही  मुझको  जी तो लीजिए


                                मधु "मुस्कान"








11 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे खयाल मेरे ही मेहमान बन गए
    मेरे ख़यालों को बस अपना नाम दीजिये
    बहुत गहरी सोच
    खुबसूरत गजल

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  2. बहुत खूब , मैं ख़ुद से दूर हो गयी ख़ुद की तलाश में
    मेरे पते को अपना पता बोल दीजिए

    मेरे खयाल मेरे ही मेहमान बन गए
    मेरे ख़यालों को बस अपना नाम दीजिए

    आँखों से कहीं दूर है उल्फ़त की रोशनी
    उल्फ़त के चरांगों को जलने तो दीजिए

    मौसम का इशारा है चूम लो आँखों को
    पत्थर नहीं हूँ मोम हूँ जरा छू तो लीजिए

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  3. मैं ख़ुद से दूर हो गयी ख़ुद की तलाश में
    मेरे पते को अपना पता बोल दीजिए


    हम वहां हैं ,जहां से ,खुद हमें अपनी खबर नहीं .

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  4. मौसम का इशारा है चूम लो आँखों को
    पत्थर नहीं हूँ मोम हूँ जरा छू तो लीजिए
    मन के गहन भाव को व्यक्त करती रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  5. मेरे खयाल मेरे ही मेहमान बन गए
    मेरे ख़यालों को बस अपना नाम दीजिए
    बहुत खूब !बहुत खूब !बहुत खूब!कोमल पदावली और भाषा शैली में भाव शायरी दिल से , बिम्ब लिए जीवन का विछोह लिए प्रेमी का .बहुरिया से आत्मा का विछोह लिए .

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  6. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

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