शुक्रवार, 31 मई 2013

मधु सिंह : ज़लील -सी गाली

    

            ज़लील -सी गाली 

                     (दुष्यन्त के नाम )
      
  लाखों   कटीली   झाड़ियाँ  , उग  गई  हैं जिश्म पर 
 तू  एक  ज़लील - सी  गाली  से   कम   हसींन  नहीं 

 इश्तिहारों  की  तरह   तुम  लटकी   हो   कील पर
तुझे  यकीन  नहीं  कि  तेरे पावों  तले  ज़मीन नहीं

सारे   ज़मीर  लुट    गये  ,  जिश्म   के    बाज़ार  में
आस्तीन  ही  तेरी  साँप  है,  अब  वो आस्तीन नहीं

काग़ज़  पे   ज़िन्दगी   की  जो   तस्बीर  उभरती  है
लगता  है   कि   तू   कमीनो  से   कम  कमीन नहीं

चुभ   गए   काँटें   घृणा  के  , पाकीजगी  के  वक्ष में 
तू , तेरी दुनियाँ, ईम़ा तेरा,दोज़ख से बेहतरीन  नहीं


                                                 मधुर "मुस्कान "




        
       

20 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बेहतरीन ग़ज़ल
    खुश कीत्ता
    सादर

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  2. ....क्या कहने, बेहद उम्दा गजल
    जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ !

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  3. सुन्दर गजल ,आक्रामक और धारदार तेवर " खिड़कियाँ नाचीज़ गलिओं से मुखातिब हैं ,अब लपट शायद बगल के घरों तक है जा पहुंची ....

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  4. वाह! क्या खूब ग़ज़ल कही आपने | आभार

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  5. बहुत बढ़िया ग़ज़ल सुंदर प्रस्तुति !!

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (02-06-2013) मुकद्दर आजमाना चाहता है : चर्चा मंच १२६३ में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. सारे ज़मीर लुट गये , जिश्म के बाज़ार में
    आस्तीन ही तेरी साँप है, अब वो आस्तीन नहीं bahut khoob ....

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  8. चुभ गए काँटें घृणा के , पाकीजगी के वक्ष में
    तू , तेरी दुनियाँ, ईम़ा तेरा,दोज़ख से बेहतरीन नहीं

    बेहतरीन !

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  9. सारे ज़मीर लुट गये , जिश्म के बाज़ार में
    आस्तीन ही तेरी साँप है, अब वो आस्तीन नहीं,,,

    बहुत सुंदर गजल ,,

    recent post : ऐसी गजल गाता नही,

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  10. सारे ज़मीर लुट गये , जिश्म के बाज़ार में
    आस्तीन ही तेरी साँप है, अब वो आस्तीन नहीं,,,

    बहुत सुंदर गजल .सादर..

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  11. काग़ज़ पे ज़िन्दगी की जो तस्बीर उभरती है
    लगता है कि तू कमीनो से कम कमीन नहीं----

    अदभुत-- मन से निकली सच्ची और सटीक बात

    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    आग्रह है पढें
    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  12. लाखों कटीली झाड़ियाँ , उग गई हैं जिश्म पर
    तू एक ज़लील - सी गाली से कम हसींन नहीं

    अदभुत, उत्कृष्ट प्रस्तुति

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