इंद्र धनुष का रंग उड़ गया , भाव सभी जल दुराचार हो गए
शब्दों के तो खाल नुच गए ,रिश्ते खुद में ही व्यभिचार हो गए
खो गया अर्थ भाई का अब , अब भाई ? ड्रामे के किरदार हो गए
है पता आज इसका सबको , भाई ही जिश्म के दावेदार हो गए
कहते तो हैं वो पिता तुल्य है, पिता शब्द निर्वसन हो गए
शब्द फिर रहे अर्थ खोजते रिश्ते सब खुद ही व्यापर हो गए
बहन शब्द कितना पावन है पर इसके अर्थ भाव सब नर्क हो गए
दुराचार के चरम बिंदु बन अब , रिस्ते इश्क के नंगे बाज़ार हो गए
रोज सुनाई देते किस्से, कब कहाँ चीर किसकी कितनों ने हर ली
क्या देखें क्या सुने आज हम रिश्तों के तो अब तार-तार हो गए
किस्से एक नहीं, दो -चार नहीं ,यत्र तत्र सर्वत्र कई हज्जार हो गए
गुरू ज्ञान सब अर्थहीन हो गए, रिश्ते नंगेपन के हथियार हो गए
होठ, तबस्सुम, आँखे, चेहरे, शर्म, हया सब के सब ब्यापार हो गए
शब्दों के तो अर्थ खो गए रिश्ते हो निर्वस्त्र घृणित उपहार हो गए
मधु "मुस्कान "
रोज सुनाई देते किस्से, कब कहाँ चीर किसकी कितनों ने हर ली
जवाब देंहटाएंक्या देखें क्या सुने आज हम रिश्तों के तो अब तार-तार हो गए
बढ़िया अभिव्यक्ति !!
वर्तमान परिपेक्ष्य का जीवन्त चित्रण किया है आपने इस रचना में!
जवाब देंहटाएंvartaman sandarbh me risto ki sacchayee ko benakab kari prastuti बहन शब्द कितना पावन है पर इसके अर्थ भाव सब नर्क हो गए
जवाब देंहटाएंदुराचार के चरम बिंदु बन अब , रिस्ते इश्क के नंगे बाज़ार हो गए
रोज सुनाई देते किस्से, कब कहाँ चीर किसकी कितनों ने हर ली
क्या देखें क्या सुने आज हम रिश्तों के तो अब तार-तार हो गए
किस्से एक नहीं, दो -चार नहीं ,यत्र तत्र सर्वत्र कई हज्जार हो गए
गुरू ज्ञान सब अर्थहीन हो गए, रिश्ते नंगेपन के हथियार हो गए
होठ, तबस्सुम, आँखे, चेहरे, शर्म, हया सब के सब ब्यापार हो गए
शब्दों के तो अर्थ खो गए रिश्ते हो निर्वस्त्र घृणित उपहार हो गए
जवाब देंहटाएंकल 10/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
एक सार्थक और समसामयिक रचना
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई पर से पर्दा उठती और चेहरों पर मुखौटा लगा क्र बैठे लोगो के मुह पर कालिख पोतती एक बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसटीक...अच्छा लगा आपको पढ़कर.
जवाब देंहटाएंसच ही तो है..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना....
जवाब देंहटाएंअनु
वास्तविकता कहती बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंहोठ,तबस्सुम,आँखे नम,शर्म-हया ब्यापार हो गए
जवाब देंहटाएंशब्दों के अर्थ खो गए रिश्ते घृणित उपहार हो गए,,,,
वाह ,,, बहुत खूब,वास्तविकता के करीब बहुत उम्दा,लाजबाब रचना....बधाई,मधु जी,,,,
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
शब्दों के तो अर्थ खो गए ,रिश्ते सब निस्सार हो गए .....बहुत खूब लिख दिया आपने ,किस्से कई उधार हो गए ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना है मधु जी ,वागीश जी आज के अतिथि कवि हैं पढ़ें उन्हें ....
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सोमवार, 10 दिसम्बर 2012
वोट बुझक्कड़ दिल्ली में
आज से हम अपने इस ब्लॉग को इलेकट्रोनिक समाचार पत्र का रूप दे रहें हैं .आपकी विचार प्रेरित टिप्पणियों
एवं राष्ट्र हित की रचनाओं का स्वागत है .अगर राष्ट्र बचेगा तो हम बचेंगे .वर्तमान की वोट परस्त राजनीति का का
प्रतिकार करती ये कविता प्रस्तुत है। अतिथि कवि हैं -डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश .
वोट बुझक्कड़ दिल्ली में
सत्ता जीती संसद हारी ,हारा जनमत सारा है ,
चार उचक्के दगाबाज़ दो ,मिलकर खेल बिगाड़ा है .
(1)
सात समन्दर पार कम्पनी ,ईस्ट इंडिया आई थी ,
व्योपारी के वेष में सुविधा ,बीज फूट के लाई थी .
विषकूटित वो बीज बो दिए ,राजे रजवाड़ों के मन में ,
संशय ग्रस्त हुए आपस में ,शंकित थे सब अंतरमन में ,
पासे फेंके फांस सरीखे ,छल बल और मक्कारी से ,
बन बैठे शासक पंसारी ,ऐसा पैर पसारा है ,
चार उचक्के दगा बाज़ दो ,मिलकर खेल बिगाड़ा है .
(2)
ठीक उसी का एक नमूना ,फिर से आया दिल्ली में ,
गांधारी शकुनी सहमत हैं ,फ़ितने पिठ्ठू दिल्ली में ,
लूमड़ राजनीति के ललवे ,मायावी हैं दिल्ली में ,
चौदह पीछे चार हैं आगे ,वोट बुझक्कर दिल्ली में ,
भारत तो अब द्वारपार है ,इंडिया बैठा दिल्ली में ,
भकुवों ने है बाज़ी जीती ,और मीर को मारा है ,
चार उचक्के दगा बाज़ दो मिलकर खेल बिगाड़ा है .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
अभिमन्यु वाली रचना मैं ढूंढ नहीं पाया हूँ कहाँ है मेरे ब्लॉग पर आके टिपण्णी में पोस्ट कर दें .शुक्रिया आपकी सद्य उत्साह वर्धक संजीवन देती टिप्पणियों का .नेहा ,सत्कार .आभार .
जवाब देंहटाएंएकलव्य और अभिमन्यु दोनों मारे जा चुकें हैं अब तो पैदा भी कंप्यूटर सावी होतें हैं बच्चे जो पेट से सीख के आते हैं आन लाइन रहना और कम्यूटर और WII GAMES.बेचारा एकलव्य है कहाँ ?
जवाब देंहटाएंमिलवाओ न उससे .
वीरुभाई
मेरी आवाज़ सुनो -
O2222 17 64 46
0961 902 2914
आपको पहली बार पढ़ा बढ़िया लगा ...आप भी पधारो मेरे घर पता है ....
जवाब देंहटाएंhttp://pankajkrsah.blogspot.com
आपका स्वागत है
किस्से एक नहीं, दो -चार नहीं ,यत्र तत्र सर्वत्र कई हज्जार हो गए
जवाब देंहटाएंगुरू ज्ञान सब अर्थहीन हो गए, रिश्ते नंगेपन के हथियार हो गए
....आज के कटु यथार्थ की बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...
सुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंहोठ, तबस्सुम, आँखे, चेहरे, शर्म, हया सब के सब ब्यापार हो गए
जवाब देंहटाएंशब्दों के तो अर्थ खो गए रिश्ते हो निर्वस्त्र घृणित उपहार हो गए
Bilkul Sahi.