सोमवार, 31 दिसंबर 2012

34.Madhu Singh :Goonghat

                      घूँघट    

         आज आई थी मैं ,अपने  साजन के घर,
         अभी, साजन ने  मुझको  निहारा ही था
  
         शरम से मैं , घूँघट में  तड़प  ही रही थी,
         उनकी नज़रों का ,कातिल इसारा ही था 

         चाँद  शर्मा  के  मुझसे   कहीं  छुप  गया
         ज्वार दिल में उठे,अभी नथ उतारा ही था 
    
          हाथ ज्यों  ही  उठे  ऊनके,  घूँघट  उठाने
          मै  समझी भंवर, पर में किनारा ही था

         चाँद मुझसे न जाने क्यों  खफ़ा हो गया
         घूँघट चेहरे का  मैंने ज्यों उतारा  ही था

          मैंने देखा सजन , तो  मैं  सिहर ही गई
          मेरी आँखों  में उसने बस निहारा ही था

          छुप गया चाँद बदली में, रात काली हुई  
          उनकी  बाहों का प्यारा  वो सहारा ही था  

          रुक  गई रात ,सब  कुछ  ठहर  सा गया   
          शर्म से मेरे चेहरे का बदला नज़ारा ही था

                                                  मधु"मुस्कान"

          
       
         

      

                         

  
        
         
        
       

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक प्रेम मिलन एक संवेग का मूर्तीकरण है यह बंदिश .खूबसूरत संवाद खुद का खुद से .

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  2. सौन्दर्य,प्रेम और समर्पण की पराकास्था की गहन अनुभूतिओं से सजी सुन्दर रचना

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  3. उम्दा उत्कृष्ट प्रस्तुति
    यह वर्ष सभी के लिए मंगलमय हो इसी कामना के साथ..आपको सहपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ...!!!

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  4. बहुत खूब

    नव वर्ष 2013 की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं

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  5. बहुत सुंदर, मुबारक हो

    नया साल भी शुभ हो

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  6. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ,चाँद मुझसे न जाने क्यों खफ़ा हो गया
    घूँघट चेहरे का मैंने ज्यों उतारा ही था

    मैंने देखा सजन , तो मैं सिहर ही गई
    मेरी आँखों में उसने बस निहारा ही था

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