बन मुकदमा एक झूठा खुद जिन्दगी से लड़ती रही
खुद बनी अपना वकील ख़ुद से ज़िरह करती रही
ख़ुद बनी मुज़रिम इल्जाम ख़ुद पर ही लगाती रही
बेडियाँ पावों में डाले अपने, ख़ुद को तलब करती रही
ख़ुदा जाने अदालत में कैसे ख़ुद निर्वसन होती रही
क़त्ल,कातिल,खून,खंज़र,जज ख़ुद ही मैं बनती रही
खुली इज़लास में मुन्सिफ की, मै किस कदर रोती रही
हर जगह मैं ही दिखी बस बन इलज़ाम एक जीती रही
लगे धब्बे जो माथे पर देख उसको किस तरह जीती रही
ज़िदगी की राह में बन कालिमा मै घुट घुट के मरती रही
क्या इल्ज़ाम दूं तक़दीर को अपनों से ही मै छलती रही
ज़िन्दगी हो गई खामोस बस बन अपना लहू बहती रही
मधु "मुस्कान"
क्या इल्ज़ाम दूं तक़दीर को अपनों से ही मै छलती रही
ज़िन्दगी हो गई खामोस बस बन अपना लहू बहती रही
मधु "मुस्कान"
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (12-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
"क़त्ल,कातिल,खून,खंज़र,जज ख़ुद ही मैं बनती रही"
जवाब देंहटाएंआप विदूषी महिला हैं ,सोनिया गांधी नहीं हैं जो हिंदी को रोमन लिपि में लिखें .कृपया थोड़ा सा पुरुषार्थ करें .जी
जवाब देंहटाएंमेल में जाएं ,अ दबाएँ ,हिंदी में टिपण्णी लिखें फिर पेस्ट करें .गरिमा बढ़ जायेगी आपकी कलम की .
इसे अन्यथा न लें .हमारी (मेरी )उम्र शर्तों वाली नहीं है सलाह और समझौते वाली है आपका फैसला सर माथे पर .
तिप्प्पनी आती है तो उत्साहित होतें हैं शुक्रिया .
नारी की सार्वत्रिक (युनिवर्सल )पीड़ा के सारे आयामों को स्वर दिया है इस रचना ने ,कोई बे -शुमारी सी बे -शुमारी है ,सब कुछ स्वगत कथन सा .बहुत सुन्दर भावानुभूति विचलित करती सी मन को .
जवाब देंहटाएंनारी की सार्वत्रिक (युनिवर्सल )पीड़ा के सारे आयामों को स्वर दिया है इस रचना ने ,कोई बे -शुमारी सी बे -शुमारी है ,सब कुछ स्वगत कथन सा .बहुत सुन्दर भावानुभूति विचलित करती सी मन को .
जवाब देंहटाएंखुद परदे की ओट में हमें ठेल दिया अनुभूति का दंश झेलने के लिए .
भाव अच्छे हैं |
जवाब देंहटाएंआशा
एक आह.....जो गज़ल बन कर निकली है..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब मधु जी..
अनु
बेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंसादर
नारी जीवन की समूर्ण व्यथा कथा को बड़े ही मार्मिक रूप में प्रस्तुत करती रचना********** बन मुकदमा एक झूठा खुद जिन्दगी से लड़ती रही
जवाब देंहटाएंखुद बनी अपना वकील ख़ुद से ज़िरह करती रही
ख़ुद बनी मुज़रिम इल्जाम ख़ुद पर ही लगाती रही
बेडियाँ पावों में डाले अपने, ख़ुद को तलब करती रही
ख़ुदा जाने अदालत में कैसे ख़ुद निर्वसन होती रही
क़त्ल,कातिल,खून,खंज़र,जज ख़ुद ही मैं बनती रही
जवाब देंहटाएंआप तो हिंदी विजेट भी लिए हैं फिर टिपण्णी अंग्रेजी में क्यों ?शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी पर शिव स्थल के सन्दर्भ में .
लगे धब्बे जो माथे पर देख उसको किस तरह जीती रही
जवाब देंहटाएंज़िदगी की राह में बन कालिमा मै घुट घुट के मरती रही
बेबसी का मार्मिक चित्र........
व्यथा को शब्दों का जामा पहना मूर्त किया है आपने नारी के रूप में .बढ़िया प्रस्तुति .शुक्रिया आपकी सदाबहार टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया उम्दा सृजन,,,, बधाई। मधु जी ,,
जवाब देंहटाएंफालोवर बने तो हार्दिक खुशी होगी,,,,आभार
recent post हमको रखवालो ने लूटा मधु
अपने मन के भाव से ...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबन मुकदमा एक झूठा खुद जिन्दगी से लड़ती रही
खुद बनी अपना वकील ख़ुद से ज़िरह करती रही
नारी की जद्दीजहद को रूपायित करती उसके अस्तित्व के संघर्ष को मुखरित करती कथा है यह पोस्ट अंतर तम की व्यथा है यह पोस्ट .
आपकी टिप्पणियाँ हमारे सिरहाने की निकटतम राज दान बनी रहतीं हैं .
ख़ुद बनी मुज़रिम इल्जाम ख़ुद पर ही लगाती रही
जवाब देंहटाएंबेडियाँ पावों में डाले अपने, ख़ुद को तलब करती रही
waah awesome..
.
jabab nahi iss gajal ka.. behtareen:)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .आदाब .
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बिंदास है लेखन आपका , अंदाज़ भी और सम्मान से आप्लावित देखा जब भी देखा आपको .शुक्रिया इस नजर का इस जिगर का .
ram ram bhai
जवाब देंहटाएंमुखपृष्ठ
बृहस्पतिवार, 20 दिसम्बर 2012
Rapist not mentally ill ,feel they can get away'
'Rapist not mentally ill ,feel they can get away'
माहिरों के अनुसार बलात्कारी शातिर बदमॉस होतें हैं जो सोचते हैं उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है वह साफ़
बच
निकलेंगें .इस नपुंसक व्यवस्था के हाथ उस तक नहीं पहुँच सकते .
तस्दीक की जानी चाहिए यह बात कि बलात्कार एक इरादतन अदबदाकर किया गया हिंसात्मक व्यवहार है
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .सादर .
ram ram bhai
जवाब देंहटाएंमुखपृष्ठ
बृहस्पतिवार, 20 दिसम्बर 2012
Rapist not mentally ill ,feel they can get away'
'Rapist not mentally ill ,feel they can get away'
माहिरों के अनुसार बलात्कारी शातिर बदमॉस होतें हैं जो सोचते हैं उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है वह साफ़
बच
निकलेंगें .इस नपुंसक व्यवस्था के हाथ उस तक नहीं पहुँच सकते .
तस्दीक की जानी चाहिए यह बात कि बलात्कार एक इरादतन अदबदाकर किया गया हिंसात्मक व्यवहार है
,जिसका मकसद बलात्कृत को न सिर्फ चोट पहुंचाना है उसकी आत्मा को भी कुचलना है ,नीचा दिखाना है
.सबक सिखाना है .बलात्कारी अनुचित रूप से शिकार बनाता है उत्पीड़ित महिला को ,युवती को .
न तो यह अपराध तत्व मनोवैज्ञानिक समस्याओं से ग्रस्त रहतें हैं न किसी किस्म के व्यक्तित्व विकार से सारा
फंडा इनके दिमाग में यह रहता है :बच निकलेंगे हम तो हमारा कोई क्या बिगाड़ सकता है .
उत्तरी अमरीका और दक्षिण अफ्रिका में किये गए ऐसे अध्ययनों से जो बलात्कारियों के बारे में ज्यादा से
ज्यादा जानकारी देतें हैं जिनके तहत इन अपराध तत्वों की Psychological profiling जुटाई गई है ,पता चला है
,संभवतया बाल्यकाल में इनका खुद का साबका हिंसात्मक व्यवहार से पड़ा है .बदसुलूकी हुई है इनके साथ
परवरिश के शुरूआती बरसों में .
तिहाड़ जेल के 242 अपराध तत्वों पर संपन्न एक पांच साला अध्ययन से पता चला है,इनमें से 70%लोग लौट
लौट कर बारहा ऐसे ही अपराध करते आयें हैं ,बच निकलते रहें हैं हर बलात्कार के बाद . औरत पर हमला करते
वक्त यह आत्मविश्वास से भरे होते हैं .पूरा भरोसा होता है इन्हें अपने दुष्कार्य (धतकर्म )की सफलता का .
कमसे कम चार मर्तबा या और भी ज्यादा बार ऐसा धत कर्म ये लोग पकड़े जाने से पूर्व औसतन कर चुके थे .
दिल्ली मनोरोग केंद्र के माहिर डॉ .सुनील मित्तल के अनुसार बलात्कारी विकृत मानसिकता के लोग होतें हैं
बलात्कार करके साफ़ बच निकलना इनके आनंद का उत्कर्ष होता है .दुष्कर्म में लीन रहतें हैं ये लोग .उद्दंडता
पूर्वक दुष्कर्म करके बच निकलने पर यह गुरूर करते हैं .
हिंसा और यौन की दुरभिसंधि इन्हें अतिरिक्त रोमांच और उत्तेजना से भर देती है .ऐसा चित्त होता है इन
बहरूपियों का .
यौन प्रहार करके यह खुद को यौन बहादुर मान लेते हैं .ताकत और मद का प्रतीक समझ बैठते हैं .
शायद सामान्य यौन सम्बन्ध बना ही नहीं पाते ये लोग . यही मानना है डॉ .मित्तल का .
नेशनल इंस्टिट्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसिज़ (NIMHANS)के प्रोफ़ेसर डॉ .बी .एन .गंगाधर कहतें हैं :
"I am against using psychological or sociological labels for rapists .There is nothing psychiatric about
a rapist .In fact ,a person with a psychiatric illness will never commit a rape .It is clearly a criminal
mind that has decided to gratify oneself despite the norms of society."
मनोरोगों से ग्रस्त नहीं रहतें हैं ये अपराधी तत्व .मनोरोगी कभी यह धतकर्म नहीं करेगा .कभी किसी की
आत्मा का हनन नहीं करेगा .
प्रसन्नता और संतोष प्राप्त करतें हैं ये अपराधी अपने शिकार को सताकर ,अपमानित कर .
महिलाओं के खिलाफ हिंसा ,यौन हिंसा का बढ़ता रुझान हमारे समाज की
एक वृहत्तर समस्या बन रहा है
"India suffers from chronic disaster syndrome .There are rising costs of living ,insecurity at the
workplace ,loss of faith in the system ,but at the same time one sees famous personalities getting away
big crimes .For instance , a minister who resigns over a scam comes back unscathed ."
He felt people get under the delusion of a new reality that they can commit a crime and get away with
it .
"A MALNOURISHED BODY GETS ATTACKED BY VARIOUS MICROBES.SIMILARLY ,A
SOCIETY THAT IS MALNOURISHED WILL SEE RISE IN SUCH CRIMES AGAINST
WOMEN,"HE SAID.
उक्त उत्तेजक विचार जो आपको भी आलोड़ित किये बिना नहीं रहेंगे मुंबई के मनोरोग विद डॉ .एच शेट्टी के हैं .
जब तक तिहाड़ी लाल संसद की शोभा बढ़ाते रहेंगें ,संसद बे -आंच ,बे -आब रहेगी ऐसा ही होता रहेगा ऐसा हमारा
भी मानना है आप अपनी राय बतलाएं .
देखिये ये हाल है उस बे -कसूर भारत की लाडली का जो ज़िंदा रहना चाहती
है :
सुन रहे हो मिस्टर टिंडे
जवाब देंहटाएंउस संवेदन हीन शासन और पुलिस प्रमुख का क्या कीजे जहां पुलिस प्रमुख दिल्ली युवक युवतियों के आधी आबादी की सुरक्षा हक़ मांगने के दौरान पुलिस ज्यादतियों से जख्मी होने को गौण
,आनुषांगिक नुक्सान बतलाये .collateral damage कहे जबकि यह शब्द प्रयोग या तो भू -कंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से पैदा उस नुक्सान के लिए प्रयुक्त होता आया है जो आसपास की भू -
स्थल आकृति से तय होता है
या
फिर युद्ध के दौरान शत्रु के हमले से नागर सम्पति को होने वाले नुक्सान और जान माल की हानि के लिए प्रयुक्त होता है .
उस व्यवस्था का क्या करें जहां गृह मंत्री भारत सरकार दिल्ली रेप के अपराधियों को सज़ा देने और महिला सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए प्रदर्शन करने वाले कल के भारत को नक्सली और
माओवादी बतलाये .
चर्च की एजेंट के युवक युवतियों को आश्वस्त करने को एक असाधारण कदम बतलाये .प्रधानमन्त्री घटना के हाथ से निकल जाने के बाद मुंह खोले .लेकिन ऑस्ट्रेलिया में संदिघ्ध अवस्था में पाए
जाने
पर एक मुसलमान डॉ .
..के धर लिए जाने पर कहे -मैं रात भर सो न सका .
चरण चाटो उस चर्च की एजेंट के और उस राजकुमार के जो भारत धर्मी समाज को हिकारत की नजर से देख रहे हैं मिस्टर टिंडे ,कुचल वा रहें हैं पुलिस से .
सुन रहे हो मिस्टर टिंडे
शुक्रिया मैम आपकी सद्य टिप्पणियों का .कुछ नया दीजिये ब्लॉग जगत को अब .
जवाब देंहटाएंशुभ भावना ,शुभकामना लिए आई है आपकी पोस्ट ,सानंद रहें सेहत मंद रहें कुछ नया करें 2013 में यही शुभेच्छा है .आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंउम्मीदों पे उतरे खरे सारे तंत्र, समाज में आये ऐसा बदलाव.
जवाब देंहटाएंनए साल के पहले दिन से हमारा हो इस तरफ सार्थक प्रयत्न.
शुभकामनाओं के साथ...
क्या इल्ज़ाम दूं तक़दीर को अपनों से ही मै छलती रही
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी हो गई खामोस बस बन अपना लहू बहती रही
....लाज़वाब ग़ज़ल..हरेक शेर दिल को छू गया..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
क्या इल्ज़ाम दूं तक़दीर को अपनों से ही मै छलती रही
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी हो गई खामोस बस बन अपना लहू बहती रही
....बेहतरीन गज़ल..हरेक शेर दिल को छू गया..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति .आपकी सद्य टिपण्णी हमारी महत्वपूर्ण धरोहर है .
शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंबढ़िया रिज़ोल्व है संकल्प है आपका .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
बुधवार, 9 जनवरी 2013
शर्म इन्हें फिर भी नहीं आती
http://veerubhai1947.blogspot.in/
ram ram bhai
जवाब देंहटाएंमुखपृष्ठ
बुधवार, 9 जनवरी 2013
शर्म इन्हें फिर भी नहीं आती
भारतीय शासन व्यवस्था की काया पे निर्भया एक ऐसा जख्म छोड़ गई है जो भरते भरते ही भरेगा
.फिलवक्त उस जख्म से मवाद रिसने लगा है .खाज मची है सारी राजनीतिक काया पर .प्रतिक्रियाएं आना
इस बात का सबूत है। ये लोग अब सामने आ रहें हैं भले इनके नजरिये तंग दिल हों .आधुनिक भारत की
अवधारणा की अवमानना करते हों .कमसे कम ये अपनी चौंच तो खोल रहें हैं .
एक राज्य के मुख्यमंत्री कहतें हैं कुछ तारामंडलों में सितारों का विन्यास प्रतिकूल है ये समय आधी आबादी
के लिए बड़ा भारी है .बलात्कार इसीलिए बढ़ें हैं .
एक स्वनाम धन्य आध्यात्मिक गुरु बड़ा नायाब नुस्खा लायें हैं वहशी लम्पट बलात्कारियों को भगाने का
.बकौल इनके सरस्वती का जाप सुनके ये भाग जायेंगें .
हमारा सादर अनुरोध है माननीय आप इसका अखंड वाचन अविलम्ब शुरू करवाएं अपने मशहूर आश्रम में .
एक नाम चीन शख्शियत ने कहा औरत अब माँ बहन के रोल में कम करियर वुमेन के रोल में ज्यादा है
.जींस और टॉप पहनती है .
पश्चिमी रंग में रंगी है .दिभ्रमित है वह .असंयमी है स्वच्छंद संभोगी है ,भ्रम ग्रस्त पश्चिमी रंग में सराबोर
है .
लिंगभेद का जहर किस कदर इन महानुभावों की काया में फ़ैल चुका है यह एक निर्भया ने साफ़ करवा दिया
है .बकौल इन प्रगति वादी लोगों के आज की औरत भारत की दिव्य परम्पराओं का अतिक्रमण कर रही है
.जो कुछ
हो रहा है उसके लिए वह भी कम अन -उत्तरदाई नहीं है .
एक खापीये (खाप पंचायत के स्वनाम धन्य महावीर )कह रहे थे :चाउमीन खाने से नै पौध लम्पट हो रही है .
बकौल इनके रजस्वला होते ही लड़की पहले की तरह ब्याह दी जाए .
ये खापजादे मासूम प्रेमियों की सरे आम जान लेंगे .डिसआनर ब्रूटल किलिंग करेंगे ,बलात्कारियों का ज़िक्र
नहीं करेंगे . इनके गिर्द औरत को चुड़ेल घोषित करके नंगा घुमाया जाएगा ये खापीये उफ़ न करेंगे ,
दोगले हैं ये तमाम लोग .सबके सब निर्बुद्ध है .शासन व्यवस्था का ज़िक्र नहीं करेंगे .नान -गवर्नेंस की बात
नहीं करेंगे .
क़ानून ये बनायेंगे लागू कोई और करेगा .या फिर क़ानून खाप का चलेगा .
इंडिया का आधार कार्ड (पहचान )अब बलात्कार बन गया है .रही सही कसर ये लोग अपने अधकचरे
अर्वाचीन विचारों से पूरी कर रहें हैं .
शर्म इन्हें फिर भी नहीं आती .मुझे और आपको आती है इनके अनर्गल प्रलाप पर .
प्रस्तुतकर्ता Virendra Kumar Sharma पर 1:01 pm 2 टिप्पणियां:
आपकी नै पोस्ट तक कैसे पहुंचे ?गूगल +तो हेल्प नहीं करता है .सद्य टिपण्णी का आभार .
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक मर्तबा आपकी नै तीन चार पोस्ट खुली एक पर टिपण्णी भी की मेरा शौहर मेरा रफीक है ,शैतान बत्तमीज़ है .......पर .इसके बाद फिर वाही गूगल +का पुराना आवरण पुरानी पोस्ट आ गईं
जवाब देंहटाएंकुछ तो गड़बड़ है .देखिये क्या मांजरा है हम टिपण्णी नहीं कर पा रहें हैं .कर्ज़ चढ़ा हुआ है आपकी सद्य सार्गार्भित टिप्पणियों का .प्लीज़ देखिये या इलाही ये मांजरा क्या है ?सबसे ऊपर जो आ जाता
है गूगल प्लस पर वह यह है आप भी देख लीजिये
madhu singhDec 12, 2012 - Shared from +1 - Limited
जाड़े की नर्म धूप ...... »
धूप,जाड़ा,चाँदनी,मन,अंधेरा,आँखें
और हमारी नवीन पोस्ट पर टिपण्णी थी :
गूँथ गया सो मोती रह गया सो पत्थर ,
संग दिल सही ,मेरा आधार कार्ड है .
सिर्फ एक मर्तबा आपकी नै तीन चार पोस्ट खुली एक पर टिपण्णी भी की मेरा शौहर मेरा रफीक है ,शैतान बत्तमीज़ है .......पर .इसके बाद फिर वाही गूगल +का पुराना आवरण पुरानी पोस्ट आ गईं
जवाब देंहटाएंकुछ तो गड़बड़ है .देखिये क्या मांजरा है हम टिपण्णी नहीं कर पा रहें हैं .कर्ज़ चढ़ा हुआ है आपकी सद्य सार्गार्भित टिप्पणियों का .प्लीज़ देखिये या इलाही ये मांजरा क्या है ?सबसे ऊपर जो आ जाता
है गूगल प्लस पर वह यह है आप भी देख लीजिये
madhu singhDec 12, 2012 - Shared from +1 - Limited
जाड़े की नर्म धूप ...... »
धूप,जाड़ा,चाँदनी,मन,अंधेरा,आँखें
और हमारी नवीन पोस्ट पर टिपण्णी थी :
गूँथ गया सो मोती रह गया सो पत्थर ,
संग दिल सही ,मेरा आधार कार्ड है .
शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का का .
जवाब देंहटाएंबे -नकाब पे बारहा आये ,झूठा मुकदमा के पार न जा पाए .शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंMeaningful Presentation.
जवाब देंहटाएं