लपटें, खुद-ब- खुद उठ जायगी चिनगारियो से
बस,एक बार आप जरा खुद को तो आजमाईए
खुद - ब- खुद मुड़ जायगा रुख आन्धिओं का
बस,एक बार आप जरा हिम्मत तो दिखाईए
बिस्फोट, खुद-ब- खुद हो जायगा चंद लमहों में
बस,एक बार आप तीली माचिस की तो जलाईए
बेड़ियाँ मजबूरिओं की ख़ुद- ब -ख़ुद खुल जायगी
बस, एक बार आप अपने कदमों को तो बढाईए
बुज़दिली,खुद -ब -खुद बन कर धुवां उड़ जायगी
बस,एक बार आप आग अपने सीने में तो जलाईए
खुद-ब-ख़ुद मुड़ जायगा रुख नदी का अपनी तरफ
बस,एक बार आप मशालें अपने दिल की जलाईए
मधु"मुस्कान"
बुज़दिली,खुद -ब -खुद बन कर धुवां उड़ जायगी
जवाब देंहटाएंबस,एक बार आप आग अपने सीने में तो जलाईए
बहुत बढ़िया आंटी!
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
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जवाब देंहटाएंखुद - ब- खुद मुड़ जायगा रुख आन्धिओं का
जवाब देंहटाएंबस,एक बार आप जरा हिम्मत तो दिखाईए,,,
बहुत खूब उम्दा प्रस्तुति,,, मधु जी,,,,
recent post : समाधान समस्याओं का,
इरादों को हवा देती सुन्दर अभिव्यक्ति.कभी आप हाथ में खंजर उठाने को मजबूर कर देती हैं तो कभी मोहब्बत के तरानों को छेड़ देती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
जवाब देंहटाएंहिम्मत करे इंसान तो क्या कर नहीं सकता !
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी रचना..
जवाब देंहटाएंबुज़दिली,खुद -ब -खुद बन कर धुवां उड़ जायगी
बस,एक बार आप आग अपने सीने में तो जलाईए
बहुत सही बात,,,