क्यों चल दिए
लिए थे सात फेरे, कुछ कसमे भी खाईं थी
छोड़ मुझको अकेली क्यों चल दिए तुम
जो कसमे ली हमने साथ जीने - मरने की
तोड़ कसमो को किस डगर चल दिए तुम
बिन कहे कुछ हो चुप क्यों चल दिए तुम
कुछ कहा भी नहीं क्यों कुछ सुना भी नहीं
बंद पलकें किए क्यों चुप चल दिए तुम
कल तक तो निभाई तुमने कसमे सभी
क्या हुआ आज क्यों धोखे से चल दिए तुम
मै अकेली यहाँ किससे सुख दुःख कहूँगी
माँग मेरी क्यों सूनी कर चल दिए तुम
साथ मरने का वादा क्यों तुमने किया था
मुझको बेसहारा कर क्यों छल गए तुम
रंग तुमको न भाया जो सारी उमर भर
क्यों उस सफेदी में रंग,छोड़ चल दिए तुम
संग तुम्हारे चलूँ,या वह निशानी ले जियूं
कोख़ में रख जिसे चुप-चाप चल दिए तुम
क्या बताउंगी उसे जब वो पूछेगा तुम्हे
बात मनो मेरी रूक भी जाओ यहीं तुम
आज तक तो तुमने न जिद कभी भी किया
दे किस खता की सजा क्यों चल दिए तुम
जाओ जाओ न रोकूंगी अब मै तुझे,देखो मुझे
बिन निहारे मुझे क्या जा भी पाओगे तुम
मधु "मुस्कान"
क्या बताउंगी उसे जब वो पूछेगा तुम्हे
जवाब देंहटाएंबात मनो मेरी रूक भी जाओ यहीं तुम,,,
बहुत लाजबाब खूबशूरत प्रस्तुति,,,,बधाई मधु जी,,
बेहद संवेदनशील प्रस्तुति ,नारी जीवन की उस व्यथा को रेखांकित करती जिसे सर्व कालिक और सर्व स्थानिक कहने में किसी को कोइ आपत्ति हो ही नहीं सकती ,एक पत्नी को पति के बिछुड़ने की पीड़ा और नवागंतुक को क्या जवाब दे ,की उलझन की घुटन " किसी तूफान का आसार है , मौत कुछ इशारा कर के आती है ,
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जवाब देंहटाएंदिनांक 17/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
नारी जीवन की असह्य बेदना को समेटे बेहद पीड़ा देने वाली बेहतरीन प्रस्तुति *****^^^^^^**** संग तुम्हारे चलूँ,या वह निशानी ले जियूं
जवाब देंहटाएंकोख़ में रख जिसे चुप-चाप चल दिए तुम
क्या बताउंगी उसे जब वो पूछेगा तुम्हे
बात मनो मेरी रूक भी जाओ यहीं तुम
आज तक तो तुमने न जिद कभी भी किया
दे किस खता की सजा क्यों चल दिए तुम
जाओ जाओ न रोकूंगी अब मै तुझे,देखो मुझे
बिन निहारे मुझे क्या जा भी पाओगे तुम
बेहद मर्मस्पर्शी रचना.
जवाब देंहटाएंबेहिसाब मर्मस्पर्शी कविता है।
जवाब देंहटाएंमेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..
अकेले रह जाने के दर्द को बखूबी बयान किया है आपने....
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