बहुत खूबशूरत ग़ज़ल लिख रहीं हूँ
सनम मै तुम्हारी सकल पढ़ रहीं हूँ
पढ़- पढ़ तुम्हारी ही नज़रें सनम मै
भीनी खुशबू मोहब्बत की बयाँ रहीं हूँ
लकीरें नियति की जो हैं माथे पे तेरे
उन लकीरों मै जिन्दगी पढ़ रही हूँ
खयालों में सपनों में दिल में ज़हन में
पता जिंदगी का "सनम "लिख रही हूँ
तरासो,सवारों, सजाओ अब हमे तुम
सज़ा उम्र भर की तुम्हे लिख रही हूँ
छू -छू के सांसों की गर्मी सनम की
दिन रात बस यूँ पिघल ही रही हूँ
मधू "मुस्कान"