बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

4.Madhu Singh :sanam

           सनम 


      बहुत खूबशूरत  ग़ज़ल  लिख  रहीं हूँ 
      सनम  मै तुम्हारी  सकल पढ़ रहीं  हूँ 


      पढ़- पढ़ तुम्हारी ही  नज़रें  सनम मै 
      भीनी खुशबू मोहब्बत की बयाँ रहीं हूँ 


      लकीरें  नियति की जो  हैं माथे पे तेरे 
      उन  लकीरों  मै  जिन्दगी  पढ़ रही  हूँ 


       खयालों में सपनों में दिल में ज़हन में
       पता जिंदगी का "सनम "लिख रही हूँ


      तरासो,सवारों, सजाओ अब  हमे तुम
      सज़ा  उम्र  भर की  तुम्हे  लिख रही हूँ


      छू -छू  के  सांसों  की  गर्मी  सनम की  
      दिन  रात  बस  यूँ  पिघल  ही  रही  हूँ 


     
                                   
                                    मधू "मुस्कान"


     
    


                                     


      


    


     


   
     

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

3.Madhu Singh:Eid












  





 ईद
अल्लाह  करे सबको,  ये ईद  मुबारक हो 
दरवाज़ा  खुला  रखना,  हम  दीद  करेंगें 

गुल न होने पाए, दिलों से प्यार की चाहत 
रोशन  दिलों को  रखना,  हम  दीद करेंगें 

मोल मोहब्बतों का, समझता है ये ज़माना 
तुम  चाँद  बन  के  आना,  हम  दीद करेंगें 

बिखर सको गर, बन  खुशबू  बिखर जाना  
बन  प्यार -प्यार उड़ना  ,  हम  दीद करेंगें 

दिलों में मस्ज़िदें ,आँखों में नमाज़ी रखना 
मिलने  की  कसक  बन,  हम  दीद  करेंगें  

नफ़रत के हटा चिलमन,चुपके से चले आना
हम दीद करेंगें,हम दीद करेंगें,हम ईद कहेंगें 

अपने  तबस्सुम से  रोशन दिलों को रखना  
हम ईद कहेंगें, हम ईद कहेंगें, हम ईद कहेंगें 

                                मधू "मुस्कान "



सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

2.Madhu Singh :Mera Sauhar









  




 मेरा शौहर

मेरा शौहर भी क्या चीज़ है 
जरा खफ़ा हुआ तो कहता अजीब है
गर खुश हुआ तो पल ही में 
बड़े अंदाज़ से कहता अज़ीज़ है 
यह अन्दाज़ उसका कितना लज़ीज़ है 
वो  मेरे  बेहद करीब है 
मेरी जिंदगी का ज़रीब है 
वो मेरी सुबह की पूजा और 
शाम का हबीब  है 
दरअसल वो एक रफ़ीक  है 
वो  जितना मेरे  करीब है 
उससे ज्यादा ,कहीं उसके करीब  है
दिखने में लगता बेहद शरीफ़ है 
पर, एक छुपारुस्तम  शातिर     
और वेहद खूबशूरत बत्तमीज़ है 
वो जो भी है मेरा शौहर है,मेरा मुरीद है 
मेरा नसीब है ,हाय! कितना अज़ीज़ है 

                                मधू "मुस्कान "

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

1.Madhu Singh : bevzah

  बेवज़ह

बेवज़ह  वो  रास्ते  भर  मुझसे यूँ  लड़ता रहा 
जब जुदाई होने लगी भर सिसकियाँ रोता रहा     
 
नफ़रतों  की आग में वो उम्र  भर जलता रहा      
पर  दुआएँ  माँग कर  हर रोज़ वह लाता रहा 

रिश्ते की नाज़ुक डोर में वो गाँठ ही देता रहा 
पर डोर रेशम की वह हर रोज़ ही कसता रहा 

दुश्मनी की ज़िद में वो कुछ न कुछ कहता रहा   
पर प्यार का दरिया लिए पास वो फिरता रहा 

क्या बताऊँ नाम उसका दिल से दुआ देता रहा 
लड़ते लड़ते बारहां बस वो प्यार ही करता रहा 

हो  गया  पागल  बहुत  अब  चाहने  वाला  मेरा 
ऊँगली पकड़ चलने की ज़िद पर रोज़ लड़ता रहा 

                                                    मधू "मुस्कान "