शनिवार, 30 अगस्त 2014

मधु सिंह : तेरा साया तेरे कद से बड़ा लगता है



                             
                             (1)

टूट कर बिख़र जाना, है मुझे मंज़ूर लेकिन
सज़दा गुनाहों को करूँ ,यह मेरी  फ़ितरत नहीं 

                                 (2)

तू अपना वज़ूद खुद अपने साये से पूंछ ले
मुझको को तेरा साया तेरे कद से बड़ा लगता है

                                (3)

जश्न  मनाओ के रौशनी हो गई आपके घर में  
घर जला तो जला  मेरा ,कहीं उजाला तो हुआ 

                               (4)

 अपने जूड़ों में लगे फूलों को हटा लो  तुम अब
हमने  काटों  से जीने  का हुनर सीख लिया

                              (5)


 न  तोड़ना  भूल कर  भी  कभी आईना  तुम 
वरना ख़ुद ही बिखर जाओगे तुम आईनें  के  बीच 

                             (6)

ईमान  मेरा मुझसे  इक  बात  पर  ख़फा  है 
कहता है रोज़ मुझसे  तू  मेरा  साथ छोड़  दे  

                                  मधु "मुस्कान "





बुधवार, 27 अगस्त 2014

मधु सिंह : टूटे हुए आईनों की हकीकत को बताया जाए





क्यों  न   हर  शाख पे  फूल  मोहब्बत  का  खिलाया  जाए
सिलसिला   जिंदगी  का   कुछ   इस  तरहा  चलाया  जाए 

बात  मज़हब की  न  उठे  कहीं ,  इंसानियत   का  दौर चले
दिलों में  उठ  गईं  नफ़रत  की   दीवारों  को   गिराया जाए 

हम   गुनाहों   के   मशीहा  हो   बैठ   गए , क्यूँ   कर  आज
क्यों  न  आज  अपनीं   खताओं  का   हिसाब  लगाया जाए 

मुल्क  के  रहनुमा  ही  आज   रहज़न  की   सकल  हो  बैठे 
क्यों   न   मदरसों   में  पाठ   इंसानियत  का  पढाया जाए 

तोड़ोगे    जो   ये     आईना    तो   खुद    बिखर    जाओगे 
क्यों  न इस हकीकत  को  सारी  दुनियाँ  को बताया जाए 

चलो  आज  हम नीरज  के  गीतों  के  फिर सलाम  कर लें 
 इस दुनियाँ  में  इंसानियत का नया मज़हब चलाया जाए 


                                                                                    मधु "मुस्कान"
















शनिवार, 23 अगस्त 2014

मधु सिंह : चांदनी रात में तुम नहाया करो




दिये   प्यार  के  बुझ  न  जाएँ  कहीं  चरागे  - मोहब्बत  जलाया  करो 
सुर्ख होठों पे फूलों की कलियाँ सजा खुद न आया करो तो बुलाया करो 


नाम   ले -  ले  मेरा  गुनगुनाया  करो
चांदनी   रात   में  तुम    नहाया  करो
चूम  कर अपनें  होठों से  तस्बीर मेरी 
अपनी किताबों में मुझको छुपाया करो


दिये प्यार  के  बुझ  न  जाएँ  कहीं .............



 साम   ढलते      अँधेरा   पसर   जायगा
दिये  पलकों   पे   अपने  जलाया    करो 
देख  दर्पण  में  क्या  ये सजना सवरना 
दिल  के  दर्पण से खुद को सजाया  करो  

दिये   प्यार    के    बुझ  न  जाएँ  कहीं .........


ज़ख्म भर जायगें ख्वाब खिल  जायगें
चांदनी  की तरह  खिलखिलाया  करो 
चूम  लेगी   तुम्हें   प्रात  की  लालिमा
तुम  इशारों  से  मुझको  बुलाया  करो


 दिये   प्यार    के   बुझ    न जाएँ कहीं  ................


 रात   थम   जायगी   चाँद  आंहें भरेगा  
 भर-भर  बाँहों  में  मुझको सताया करो 
 अपने ख्वाबों  को चूनर पहना  कर नई
 अंधेरों  को   रौशनी  तुम  दिखाया करो 


 दिये    प्यार   के    बुझ  न  जाएँ  कहीं  ...............



 ख्वाहिशें  आस्मा  की   ज़मी  चूम  लेंगीं    
अपनी पलकों पे थपकियों से सुलाया करो 
इक   मूरत   मेरी   अपनें   हाथो   से  गढ़ 
अपनें   दाँतों    में   ऊँगली   दबाया  करो  



दिये   प्यार   के   बुझ   न   जाएँ   कहीं  ................


 रूप - यौवन का मेहमान  है  दो  दिनों  का  
 दिल के गुलशन में कलियाँ खिलाया करो
 चांदनी   रात  में  घर  की  छत  पे  उतर 
 मुझको  बाँहों  में   भर   मुस्कराया  करो 
  

दिये   प्यार   के   बुझ   न   जाएँ   कहीं .................


 तुम्हीं कान्धा मेरे रुक्मिणी  भी  तुम्हीं 
 बना   राधा   मुझे   तुम   नचाया   करो 
 तुम्हीं  मेरे  मथुरा  तुम्हीं  मेरे  गोकुल  
 बांसुरी   की   धुनों   पर   रिझाया  करो 


दिये   प्यार   के   बुझ   न   जाएँ   कहीं .................


                                           मधु " मुस्कान "





शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

मधु सिंह : फिर लौट के आना है दुनियाँ में मुझको



                               



                                (1)
   जिश्म  की दौलत की कभी कीमत नहीं होती
   दिल की दौलत से मोहब्बत की हिना बनती है
                                (2)
 रौनके  - ज़न्नत  न  कभी  रास  आई मुझको
फिर लौट के दोबारा आना है दुनियाँ में मुझको
                               (3)
जो अंजाम हो बेहतर वो ख़ुशी है गंवारा मुझको
फ़कत आगाज बेहतर  होने  से  कुछ नहीं होता 
                               (4)
मुझको  मालूम है ज़न्नत की  हकीकत  लेकिन 
मुझको रास आता है दुनियाँ से मोहब्बत करना
                                (5)
 कहाँ तक फ़ासला मिटाओगे दुश्मनी का मेरे दोस्त
 हमने  तो  दुश्मनों  से  दोस्ती का हुनर सीख लिया 


                                             मधु  "मुस्कान "

रविवार, 17 अगस्त 2014

मधु सिंह : तनख्वाह में मिली इक लम्बी जुदाई है








 मेरी  नौकरी  है इश्क की  मोहब्बत  कमाई है
 तनख्वाह  में   मिली   इक  लम्बी  जुदाई  है

खाव्बों  में   सही   उनसे   मुलाकात   हो गई
मेरे हाथो में जरा देख तेरी  नाज़ुक  कलाई है

बिस्तर  की  सलवटों  से  एहसास  हो  रहा है
मोहब्बत  नें   आज  अपनी   बरसी  मनाई है

ये हिज्र भी क्या चीज है के जगाता है रात भर
एक  हिज्र  ही  तो  मेरी  सारी  पूँजी कमाई है 

इक आवाज  उभरती  है  दरिया की ख़मोशी से
इश्क  ने  ही  लाखों  घरों की  बत्ती  जलाई  है


इरशाद   खान  भाई  तुमनें  ये  सच   लिखा है 
"जब  भी  चलाई  इश्क  ने  अपनी  चलाई है "

                                             मधु  "मुस्कान "

रविवार, 10 अगस्त 2014

मधु सिंह : उठो कलम हुंकार भरो तुम ( स्कॉटलैंड से )

             




                     ( दिनकर जी को  समर्पित)
                   



उठो ! कलम  हुंकार  भरो तुम,आज तुझे कुछ लिखना होगा
एक नहीं अगणित तूफानों में,बन  महाकाल  चलना   होगा


खो गये  कहाँ सपने अशोक के
है  नहीं  पता  कुछ   गौतम का
सारनाथ  के  भग्नावशेष  क्यों
भूल   गये    भाषा   गौतम  की
कुशीनगर  व्याकुल है  कितना
खो  गई  कहाँ  लिक्षवी  हमारी
स्तब्ध  हो  गये स्तूप साँची के
क्यों मधुबन  शमशान हो गये
कलम ,आज तुम कुछ तो बोल

उठो कलम हुंकार भरो तुम,आज तुझे कुछ लिखना होगा
एक नहीं अगणित तूफानों में,बन महाकाल  चलना होगा


भाल  झुक गया आज कुतुब का
क्यों न फट गई छाती ज़ईफ़ की
रो रहा ताज क्यों यमुना तट पर
छुप -छुप रोती मुमताज  बेचारी
जलते  नही  दिये  अब  दिल में
खो  गई लालिमा  लालकिले की
जल जल कर बुझ गए दिये क्यों
बुझ गए तक्षशिला के ज्ञान दीप
कलम ,आज तुम कुछ तो बोल


उठो कलम हुंकार भरो तुम,आज तुझे कुछ लिखना होगा
एक नहीं अगणित तूफानों में,बन महाकाल  चलना होगा


बुझ गये दीप क्यों नालन्दा के
भारत  माँ  की  बक्ष बिध गया
साकेत  जल   रहा  धू -धू कर
कबिरा  का  कुछ  पता   नहीं 
चुप कलम हो गई  तुलसी  की
रहीमन  रो    रहा       अकेला  
कहाँ गए जयशंकर , दिनकर
कहाँ  गया   प्रताप  घाटी  का
कलम ,आज तुम कुछ तो बोल



उठो कलम हुंकार भरो तुम,आज तुझे कुछ लिखना होगा
एक नहीं अगणित तूफानों में,बन महाकाल  चलना होगा


नहीं बच  सकी   शान झाँसी की
खड़ा कुँवर गढ़ रो रहा भाग्य पर
दुर्गादास  न पैदा होते अब क्यों
कहाँ खो  गया  राणा  का चेतक 
मेवाड़   तेरा   बलिदान   कहाँ हैं

खो गया कहाँ  भारत अतीत का
शेखर   का   बलिदान   खो गया
भगत  भागता  घूम रहा  है क्यों
कलम ,  आज तुम कुछ तो बोल

 उठो कलम हुंकार भरो तुम,आज तुझे कुछ लिखना होगा
एक नहीं अगणित तूफानों में,बन महाकाल  चलना होगा


बोलो!रावी,सतलज,चेनाब,सिन्धु
धवल -नीर  क्यों   लाल  हो  गया
अरे भागीरथ, तुम  कुछ तो बोलो
फिर  कब  अवतार धरा पर लोगे  
माँ   गंगा   के    महारुदन     पर 
कब  आकर  नव  काव्य लिखोगे
कहाँ   हो  गई  लुप्त    सरस्वती 
कहाँ   खो  गई  शान   सरयू  की 
कलम ,  आज  तुम कुछ तो बोल

उठो कलम हुंकार भरो तुम, आज तुझे कुछ लिखना होगा
एक नहीं अगणित तूफानों में, बन महाकाल  चलना होगा

                                                                           
                                                                               मधु " मुस्कान "






शनिवार, 2 अगस्त 2014

मधु सिंह : फूँक-फूँक चलती न जवानी



                             ( ब्रिटेन की धरती से )

जब गिर- गिर दहाड़ते   शैल-श्रिंग  भूचाल  धरा पर आता है
पड़ गए जिधर दो डग-मग पग  ज्वाल   विवर  फट  जाता है

फूँक-  फूँक  चलती  न  जवानी *  झंझा  तूफानों  से बचकर
जब   साहस  अपनी  ऊँगली   पर  पौरुष  का    भार उठता है

चढ़-  चढ़ जुनून  की छाती  पर जब  स्वाभिमान टकराता है
इतिहास तो क्या भूगोल युगों  का पल भर में बदल जाता है

क्या  हैं  न  पता  यह  तुझको  मैं   मूक  नहीं  युग बाणी हूँ
चलती  जब -जब  हुंकार  लिए  तब  व्योम  धरा   थर्राता है

रे  वर्तमान  के हठी समय ! तेरा यह कैसा इंगित आवाहन
तू  सम्हल   जरा  पौरुष   अजेय  द्वार   खड़ा  मदमाता है

  * दिनकर जी की पंक्ति                                                
                                                          मधु "मुस्कान"