सोमवार, 19 नवंबर 2012

18.Madhu Singh:Agli Sadi

न चेहरों पर शरम होगी ,न  आँखों में  हया  होगी
आबो-हवा  अगली सदी  की कितनी  बेहया होगी  
मधु "मुस्कान"
                                                       

17.मधु सिंह : तवायफ़

   तवायफ़ 


 तवायफ़ ? एक  सच्चाई है 
 एक  लिबास है, एक ज़ूरूरत है
 उन बेशर्म मर्दों की 
 जिन्हें  लिबास में भी  हर औरत 
 नगीं  ही दिखती है, सिर्फ़ इसलिए कि 
लोगों ने अपनी बेशर्म आँखों पर 
जिन चश्मों  को लगा रखा है 
वे चश्मे आदतन
हर जिश्म को नंगा हीदेखते हैं
फिर इल्ज़ाम तवायफ़ के माथे पर क्यों ?
तवायाफ़ एक ऐसी सच्चाई है
जो झूठ नहीं बोलती 
एक ऐसा  लिबास है
जिसे हर कोई पहनना चाहता है
एक ऐसी ज़ूरूरत है जो
उन तमाम लोगों के घरों  की इज्ज़त की कीमत 
ख़ुद को रोज़ नीलाम कर बचाती है
वरना,आप सब जानते ही  हैं ,पर 
न जाने  लोग कहने से क्यों कतराते हैं?
तवायफ़ एक खुली सच्चाई है
जो तमाम घरों को नंगा होने से बचाती है 
और बेशर्म मर्दों के मुह पर
एक जोरदार तमाचा लगाती है
जिनके कपड़ों को हर  रोज़ उतरवा
उन्हें बड़े सान से  नंगा कराती है 
और एक खड़ा कर देती है एक सवाल  
क्या तुम्हारे घरों में औरतें नहीं हैं
जिन्हें तुम माँ ,पत्नी,बहन या बेटी कहते हो 
जानते हो मै भी उन्हीं में से एक हूँ 
और इसीलिए तमाम घरों की इज्ज़त 
मै ख़ुद को नंगा कर बचाती हूं  
 

                         मधु  "मुस्कान"
 

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

16.Madhu Singh : Mat Poocho

  












मत पूछो 



दर्द  दिया अपनों ने कितना  मत पूछो अब चुप भी हो जाओ 
जल-जल राख हुआ करती हूँ बन आंशू बस बहती रहती हूँ 

सोचा क्या था  सब कैसे कह दूँ चाहत थी या उसकी  नफ़रत 
रेत ,घरौदा, सागर, लहरें  बन बस मै अब बिखरा  करती  हूँ 

हो चुप  दर्पण भी नाराज हो गया   मुश्किल है अब मेरा जीना
अपना चेहरा ढक अपने ही  हाथो  बस मै अब रोया करती हूँ

सपने भी खामोस हो गए क्या सुबह नहीं होगी अब जीवन में
बुला मौत को घर अपने मै बस उससे ही अब खेला कारती हूँ 

दोस्त मेरे सब दुश्मन हो गए खुद बन  गइ मै  अपनी सौतन 
देख ज़माने की नफ़रत मत पूछों  बस मै अब रोया करती हूँ

 अब  शब्द मेंरे ख़ामोश  हो  गए  भाव  सभी स्तब्ध  हो गए
आँखे अपनी बंद किए मै बस  होठो  को अब  सीया करती हूँ

                                                                मधू "मुस्कान"


   


 

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

15.Madhu Singh :Jshn

 जश्न 

जिन्दगी  के  जश्न को  जी  भर  मनाना  चाहिए   
गम  हजारों  हों  भी  तो  क्या  मुस्कुराना चाहिए

भटकना दर्द के सहरा  में भूल कर  भी मत कभी
समंदर की हंसी लहरों को सीने में बसाना चाहिए

रहगुज़र तो  डूबी  हुई है  गुमनामी के अंधेरों  में
बन दिये की सुर्ख  लौ अंधेरों को मिटाना  चाहिए

कभी भी भूलकर भी मत रुलाना प्यार को तुम
प्यार के हर पलों  में   वफ़ा के रंग भरने चाहिए

लबोँ से कभी भी रूखसत न होने पाए मुस्कुराहट
जिन्दगी के चमन में  गुले-खुशबू  उड़ाना चाहिए

न रोना कह कभी भी बेचारगी में जी रहें हैं जिंदगी
ले दिलों में प्यार की पाकीज़गी चहचहाना चाहिए 

हँसी मासूम-सी बच्ची की दिलों में अपने बसाकर
मोहब्बत दिल का नग्मा है इसे गुनगुनाना चाहिए

ये दुनिया है  बड़ी ही सिरफिरी ऊँगली तो उठाएगी
काट उनकी उंगलीओं को उनको ही थमाना चाहिए


                                           मधू "मुस्कान"



मंगलवार, 13 नवंबर 2012

14.Madhu Singh : Naya Ghar Banaungi

    नया घर बनाउंगी 
                                                                                                                                                                              अलग एक काँच की बस्ती में अपना घर बनाउंगी  
ले  हाथ अपने पत्थरों  को,  मै   ख़ुद  को  डराउंगी  

 अकेला घर  मेरा होगा , रहूँगी  मै  खुश  अकेले में  
 जहाँ  धोखा  नहीं  होगा ,वहीँ मै  घर एक बनाउंगी 

 अकेला  रास्ता  होगा ,  न  कोइ   हमसफ़र  होगा
 रहूँगी  मै अकेली  उस जगह नई दुनिया बसाऊँगी
 
  बहुत चाहा था मैंने उसको,मगर वो सिरफिरी निकली 
  जहाँ दगा बाज़ी नहीं  होगी वहीं मै एक  घर  बनाउंगी 

   बहुत   सोचा है मैंने  हजारों बार बैठ कर अकेले में 
   जहाँ पर  न ज़हरे- खूँ  होगा वहीं  पर घर  बसाउंगी 

  रहूंगी अब  वहीं जहाँ साया  मेरा  मेरे ही साथ होगा 
  जहाँ बरसात होगी दुआओं की वहीं  मैं घर बनाउंगी

  न जाऊँगी कहीं मै डर गई हूँ अपने पन के खंजर से
  हया  होगी जहाँ जिस ठौर वहीं मै एक घर बनाउंगी

  देखी दुनिया चेहरे देखे बेशर्म सब अब दिखने लगे हैं
  मै चली उस ठौर वहीं अब प्यार की कुटिया बसाउंगी 
 

                                              मधु  "मुस्कान "



            
                                                                                                                                                                          

 

सोमवार, 12 नवंबर 2012

13.Madhu Singh: Bn Dip Khud Ko Jalayen

बने दीप खुद हम खुद को जलाएँ 


चलो आज हम सब दिवाली मनाएँ 
बने दीप  खुद हम, खुद को जलाएँ 

बने रोशनी हम सभी के दिलों की 
चेहरों पे सब के तबस्सुम खिलाएँ

अमीरी गरीबी की नफ़रत मिटाएँ
दिलों से सभी के दिलों को मिलाएँ

आँखों  में आसूँ  दिखे न किसी के
दुनिया नई हम  एक ऐसी  बनाएँ 

भूख  से अब  न कोई  रोता  दिखे
दिलों में मोहब्बत के दीए  जलाएँ 

नफ़रत की  आंधी  हम रोक कर
प्यार की एक ऐसी ज्योती जलाएँ

गर दिखे कोई रोता कहीं  भी हमे
उठा अपने सीने से उसको लगाएँ

हम सब बने एक माँ की मोहब्बत
धरा पर  मोहब्बत के  दीए जलाएँ

हर दिवाली को ऐसी दीवाली बनाएँ
बन दिया प्यार का  ख़ुद को जलाएँ

                              मधू "मुस्कान"
  





 



  


 


रविवार, 11 नवंबर 2012

12.Madhu Singh:Chehare Dekho

         









   चेहरे  देखो 


  अपने- अपने  चेहरे देखो,  हम  भी  देखें तुम भी देखो 
  दाग  कहाँ  कितने गहरे  हैं जिसने डाले हैं उसको देखो 

  दिल के भीतर अपने झांको,दिल को देखो,खुद को देखो
  दिल क्या है?चेहरे पर दिखता,हटा मुखौटा ख़ुद को देखो

  लम्बीं-लम्बीं बातें करते हो उन बातों की सच्चाई देखो
  करो  निर्वासन खुद को पहले,पहले अपने भीतर देखो

  पता तुम्हें  सब लग जायेगा ख़ुद कितने पानी में देखो
  उँगली जो औरों पर उठती अपनी तरफ उठा कर देखो

  चालें  रोज़ बदलते तुम  जो ,पहले  उन चालों  को  देखो
  औरों पर इल्ज़ाम  लगाने वालों पहले अपने  चेहरे देखो

  कह देना आसन बहुत है पहले ख़ुद को  कह कर  देखो
  अगल-बगल मत झांकों तुम पहले अपने घर को देखो

  बेटी-बहन तुम्हारी जैसी, उसी तरह तुम सब की देखो
  रोज़  बदलते चालें  अपनी  रोज़   बदलते  चहरे  देखो

   औरों  को  नंगा करते हो पहले  ख़ुद को  नंगा कर देखो
   नहीं  देख  पावोगे ख़ुद को कोशिश कर ख़ुद को तो देखो

                                                मधू "मुस्कान"








शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

11.Madhu Singh :jalao diye aaj

 दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
  







जलाओ दिये आज
चलो  हम जलायें  दिए प्यार  से  प्यार के 

बुधवार, 7 नवंबर 2012

10.Madhu Singh : khada Hai












       खड़ा है 

तस्बीर मेरी  लगा,  वो अपने दिल से  
मुझसे प्यार करने की ज़िद परअड़ा है

नज़रें  झुकाए  न  कहता  है  कुछ वो   
क्या  पता  क्यों  वो मेरे पीछे पड़ा है 

सुबह  शाम जब  भी मैं निहारूं  उधर  
अपनी जगह पर  वो मिलता खड़ा है 

बड़ा  सिरफिरा  वो तो लगता मुझे  है
उसकी आँखों में जैसे नगीना जड़ा है 

मै  जितना ही  सोचू उसके बिषय  में 
उससे ज्यादा कहीं  वो मेरे पीछे पड़ा है  

पास  आओ  कहो तो न आता कभी है 
सपने  दिल में बसाये वहीं पर खड़ा  है

दिखने  में भोला तो वो लगता बहुत है 
क्यों कुछ न कहने की ज़िद पर अड़ा है 

शरम  अब  मुझे  खूब  लगने  लगी  है 
ख्वाब टूटा तो देखा मेरी बाँहों में पड़ा है 

याद आई मुझे वो हकीकत बहुत आज 
पिछले जनम का मेरा वो शौहर खड़ा है

लिए  हाथ फूलों  का  गज़रा  वो  अपने
इस जनम में भी वो पहनाने पर अड़ा है

देखो जरा गौर से तुम सब अब उसे ही
इस ग़ज़ल के माथे पर चुप वो  खड़ा है

                          मधू "मुस्कान"




सोमवार, 5 नवंबर 2012

9.Madhu Sngh :Sapana

    
  सपना

सजन  मेरा मुझको  सताता बहुत  है 
रुलाता  बहुत  है वो  हँसाता  बहुत  है 

अपनी बातों से वो  गुदगुदाता  बहुत  है
न सुनता  है  मेरी पर  सुनाता  बहुत है 

बड़ा  सिरफिरा  है वो लड़ता  बहुत है
पास पाकर मुझे वो बहकता बहुत है  

न कहता कभी हाँ पर जताता बहुत है
वो शातिर बहुत है पर शर्माता बहुत है  

जुबाँ  उसकी  वैसे  न  खुलती  बहुत है  
दिखने में सीधा वो छुपारुस्तम बहुत है 

सखिओं  को  मेरे वो  छकाता बहुत है
न बुलाऊंगा कह फिर बुलाता बहुत है 

दिखने में सीधा तो वो लगता बहुत है 
बच के रहना सखी वो छलता बहुत है 

पास बैठो मेरे वो ये तो  कहता बहुत है  
पास बैठो तो वो नज़रें झुकता बहुत है

जैसा  भी है वो  लगता प्यारा बहुत है
मेरा सपना  है वो मेरा दुलारा बहुत है  

मेरी दुनिया है वो मुझे भाया  बहुत है 
जब भी रूठी मै उसने मनाया बहुत है

                        मधू "मुस्कान "

   




 
   


 

रविवार, 4 नवंबर 2012

8. मधु सिंह: पागल

     

    पागल 
जब  से  तुमसे   प्यार  किया  है  
हर वख्त  ही मैं  खोई  रहती हूँ 

दर्द प्यार का, इतना गहरा होगा
मै छुप-छुप बस  रोती  रहती हूँ 

क्यों  दूर  गये,  क्यों  भूल  गये 
बन  आँसूं  बस  बहती  रहती हूँ


प्यार की चाहत,  चाह- चाह  कर 
मत पूछों, मर-मर जीती रहती हूँ 

कहते हैं प्यार बहुत मीठा होता है 
मै  तो  बस यूँ हीं  तड़पा  करती हूँ

अश्रु  बूंद की  बन-बन   सरिता 
अबिरल, उर मध्य बहा करती हूँ 

आ जाओ मेरी  बाँहों में अब तुम 
बस यही सपन मै  देखा करती हूँ 

कब आओगे तुम कुछ तो कह दो 
बन  पागली बस फिरती रहती हूँ  

पागलपन  की  हद से गुजर कर
मत पूछों मै कैसे जीती  रहती हूँ 


                          मधू "मुस्कान"      

 




शनिवार, 3 नवंबर 2012

7.Madhu Singh : sharmaya

  
 
   शर्माया
  
 बहुत  शर्माया  आज  साजन  मेरा 
 न पलकें  उठाया  न  नज़रें मिलाया  

उसने की ही है ऐसी खता खूबसूरत 
देख  कर  वो मुझे है  नज़रें झुकाया 
   
 चाहा था उसने  कि  बाँहों  में भर लूँ
पास आते ही मैंने उसे ठेंगा  दिखाया 

बहुत  दिल  में  वो  अपने बुदबुदाया 
गुस्से  से  झटका  दे  मुझको  हटाया 

देख  चेहरे पे  उसके  सुर्ख मायूसियां 
दौड़  ख़ुद  उसको  मैंने  सीने  लगाया 

मुस्कुराया  बहुत  इस अदा पर मेरे वो 
कुछ पल रुको  कह वो  बहुत घबराया 

बड़ा सिरफिरा है मेरा  साजन सलोना 
प्यार से लड़ना उसने मुझको सिखाया

जाता हूँ  कहता  है ,पर जाता  नहीं  हैं
रसोई में पीछे से कैसे  ठुमका लगाया 

देखा जो मैंने नकली गुस्से  से उसको 
न आऊंगा पास कह कह आंसू बहाया  

                                    मधू  "मुस्कान"


  
















शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

6.Madhu Singh: Sajan

      













       सजन 
सजन तुमने  ही तो  हमको  शराबी  बनाया 
निगाहों से जी भर- भर कर  मुझको पिलाया 

कभी  बाँहों  में  भर- भर के  मुझको  सताया 
जिश्म को  पोर को छू -छू कर चंदन  बनाया

सताया बहुत  मुझको पाकर अकेले में तुमने  
कभी जुल्फें सवारीं  तो  कभी  आँचल  उड़ाया

सितम कितने  ढाए  कितना दिल को रुलाया   
कभी मेहंदी रचाया तो  कभी बिंदियाँ सजाया 

दिल के तारों को तुमने कितना छेड़ा बहक कर 
कभी  पायल  उतारी  तो कभी  नथुनी  सजाया 

भोले दिखने में सजन तुम तो लगते  बहुत हो 
कितना शातिर सजन मेरा जो मुझको है भाया 

                                       म "मुस्कान"
   






गुरुवार, 1 नवंबर 2012

5.Madhu singh :aag


  आग 

 लगायी  आग  तन -बदन में जो इस बार बेईमान सावन ने 
 सजन तुम चुपके से आ  जिश्म से ले रूह  तक  उतर जाओ 

अब  सही जाती  नहीं वर्षात , सजन कुछ  कर गुज़र जाओ 
सम्हालू कैसे नाज़ुक दिल को अपने मै, अब तुम चले जाओ

गुल  भी अब बन खार बेहद चुभने लग गए हैं  न जाने क्यों 
जमाना पगली-पगली कह बुलाने लग गया है सुन तो जाओ 

बुला कर कोयलें सब  मुझको  वो  बेझिझक  यह कहने लगीं 
बन चकोरी आज तुम  बस  चकवे की बस्ती उड़ चली जाओ 

दिल की  धड्कन को तुझे  कैसे सुनाऊँ ऐ  मेरे शर्मीले सजन
चुप-चाप मेरे करीब आ तूँ जिश्मे अन्जुमन में बिखर जाओ 

                                                           मधू "मुस्कान"