बुधवार, 31 जुलाई 2013

मधु सिंह : खूँ के दाग धुलेंगें



      खूँ के दाग धुलेंगें 
 
 
  बचे  हैं  चीथड़े   तन  के   गुनाहों   की   कहानी है 
  उधर  उफ़नी  जवानी   है  इधर  गंगा का पानी है 

 नज़ारें अज़ीब  हैं  ख़ुद -ब- ख़ुद बंद  हो  गईं आँखें 
 हया जब-जब गिरी नाली में बहा आँखों से पानी है 

 खूँ  के धब्बे  न  धुल  सके लाख  बरसातों के बाद 
 माथे  पे  लगे   धब्बों  की  बड़ी  लम्बी  कहानी  है  

 उनको मालूम न था जिश्मे-दौलत की कीमत,उफ़ 
 चंद  सिक्को  पे थिरकती  ज़िन्दगी  की कहानी  है

खुल  गये  हैं  जिश्म  के कुफ़लों  के  दहाने बेधड़क
हाय ये  ज़िन्दगी , जिश्मे  फ़ितरत  की कहानी है

                                            मधु "मुस्कान"
 


   



   


 

 




    

सोमवार, 29 जुलाई 2013

मधु सिंह: ज़न्नत की हक़ीकत

   ज़न्नत की हक़ीकत    

   हमने  देखी है  उनके ज़न्नत की हक़ीकत ,लेकिन 
   ऐ ख़ुदा उनका ज़न्नत तू  उनको  मुबारक कर दे
  ऐसी ज़न्नत जहाँ  जिश्म की कीमत लगाई जाती है  
  हुश्न बे-अदब हो मंडी की राह चलता हो जहाँ
  उफ़  वो ज़न्नत और वो जन्नते -फ़ितरत,वो नज़ारा
 अश्क आखों से मेरे लहू बन के टपक पड़ते हैं 
 मुझको  तू बख्स दे जन्नत की फ़ितरतों से मेरे सलीम चिस्ती 
 मुझको लौटा दे मेरा दोज़ख़ ,मेरा दोज़ख तू  मुझको  मुबारक कर दे 
                                                                 
                                                                   मधु "मुस्कान"

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

मधु सिंह

कहीं ये मोहब्बत नहीं है 


पकड़   हाथ  में  खत,यूँ  दिल  थाम  लेना, 
छुप  आँसू  बहाना  फ़िर  रोना  सिसकना 
बारहां   खोलना   बंद    करना   खतों  को 
बताओ मुझे  कहीं  ये मोहब्बत तो नहीं है

चिलमन  हटा  झाकना, डगर डाकिए की  
देखना   डाकिये का उसका का न दिखना 
रह माथे की सलवटों पर ऊँगली रगड़ना  
बताओ  मुझे कहीं ये मोहब्बत तो नहीं है

दूध का रोज बहना और जलना रसोईं में
कह  उफ़  पल्लू  से  पोछना  आँसुओं का  
खीझ दातों में रख  ऊँगलियों  को दबाना  
बताओ  मुझे कहीं ये मोहब्बततो  नहीं है 

 न   खाना   मगर   कह   दिया  खा  लिया 
भूलना ख़ुद को फ़िर खोजना ख़ुद खुदी को      
जाना   कहीं   पर  पहुच   जाना  कहीं  को
बताओ  मुझे  कहीं  ये मोहब्बत तो नहीं है 

है  पढ़ी  भी  नहीं  मैंने  किताबे -मोहब्बत  
है होती ये कैसी न देखा कभी  भी कहीं भी 
मुझको  तो  कोई  यह   बीमारी  है  लगती 
बताओ  मुझे  कहीं  ये मोहब्बत तो नहीं है 

कहती सखियाँ सभी  तू  पागल सी लगती
रह खींचना अपने बालों फ़िर रोना चीखना    
फ़िर अचानक हाथ  माथे पर रख  रगड़ना
बताओ मुझे  कहीं ये  मोहब्बत तो नहीं है 

 आहट  किसी   की  पर   समझना  उसी की
बात  करना  उसी  की  झेपना  फिर उसी से 
सुबह - शाम  तस्बीर  फ़िर  उसी  की बनाना
बताओ  मुझे  कहीं  ये  मोहब्बत  तो  नहीं है 

  रास्ते चलते चलते फिर यूँ मुड़ना अचानक 
 देखना   किसी   को  पर  समझना  उसी को 
 रोज़ तस्बीर  उसी की अपने दिल में बनाना 
 बताओ मुझे कहीं ये   मोहब्बत   तो   नहीं है 

 लगा    तस्बीर    उसकी    सीने   से  अपने
देर  रात  तक उससे  यूँ हीं बाते  भी करना 
फ़िर तस्बीर को अपने हाथों खाना खिलाना
बताओ मुझे  कहीं  ये  मोहब्बत तो   नहीं है 
       
लगता   हमेसा  की   जैसे   वही   आ  रहा  है 
पर आना न उसका फ़िर रह-रह आँसू बहाना 
रो -रो   के  यूँ   हीं  तड़पना  औ  मरना   तेरा
बताओ मुझे कहीं  ये  मोहब्बत   तो   नहीं  है 


बनाई  मोहब्बत  जिसने  वो बड़ा बेरहम था 
दर्दे -  मोहब्बत से  लगता  वो  वाकिफ़ न था 
गर  बनाई  मोहब्बत  राहे  रहबर भी बनाता
क्या  कहें  उस ख़ुदा को  मेरी किश्मत नहीं है  
        
                              मधु "मुस्कान"





मंगलवार, 9 जुलाई 2013

मधु सिंह : कयामत सी गुज़री है

      कयामत सी गुज़री है 


   हमारी ज़िन्दगी में क्या- क्या  न गुजरी है
   ग़मों  की  रात  बड़ी  बेकली  सी गुज़री है 

   दामन पे मेरे बिजलियों की बरसात हुई है 
   कल ही तो मिरी ज़िन्दगी से मौत गुज़री है 

    कुछ लोग खामोश मगर ये सोच रहे होंगें 
    क्या  हुआ  कि  हादसों  की रात गुज़री है 

    ज़िन्दगी जल -जल के ख़ाक  हुई जाती है 
    हाय ये ज़िन्दगी बड़ी गरीब  सी  गुज़री है 

    मेहरबां  हो  न  सकी  मौत  भी  मुझ पर
    गुज़री है मौत बड़ी हमसफ़र सी गुज़री है

    है हकीकत की बीमार की हालत नाज़ुक 
    मौत  भी गुज़ारी पर न मौत सी गुज़री है 

    है गुज़ारिस कि मौत आये मेरे घर आये 
    लगे की मौत गुज़री है मौत सी गुज़री है 

                                        मधु "मुस्कान"



 


  


शनिवार, 6 जुलाई 2013

मधु मुस्कान : धड़कन

                       
  
                                                                         
                   धड़कन
               हमारी धड़कन तुम्हारी  धड़कन साथ -साथ क्यों धड़क रहीं हैं 
               तुम्हारें सीने की खामोशियाँ  क्यों हमारें चेहरे पर दिख रहीं हैं 

               तुम्हारें  क़दमों  की आहटें  क्यों  हमारे  दिल में मचल रहीं  हैं 
               तुम्हारें सांसों  की खुशबुएँ क्यों  हमारे सांसों  में चल रहीं हैं

              तुम्हारे  पावों  की  छागलें  क्यों  हमारे  कानों  में  बज  रहीं  हैं 
              तुम्हारे  होठों  की  हसरतें  क्यों  हमारे  दिल  में चहक  रहीं  हैं 

              तुम्हारे ख्वाबों  की  मंजिलों क्यों  हमारे  आँखों में  दिख रहीं हैं 
              तुम्हारे गेसुओं की आवारगी में क्यों चिनारे खुशबू महक रहीं हैं 

             तुम्हारे चाहतों  की  बारिसें   क्यों  हमारे वज़ूद पर बरस   रहीं हैं 
            तुम्हारे हुश्न की नज़र की ख़ातिर क्यों  हमारी आँखें तरस रही हैं

             हुआ वही  था  जो नियति में लिक्खा  कुछ न कुछ तो होना था  
             उनकी   ख्वाहिशों की  इनायतें   हमारे  वज़ूद पर  बरस  रहीं हैं 

            
                                                                              मधु"मुस्कान "

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

मधु सिंह : बहा आँखों से पानी है

   बहा आँखों से पानी है 
 
 
  बचे   हैं   चीथड़े   तन   के   गुनाहों   की   कहानी  है 
  कहीं   उफ़नी   जवानी   है  कहीं   गंगा   का पानी है 

  नज़्ज़ारे अज़ीब हैं  ख़ुद -ब-  ख़ुद  बंद  हो  गईं आँखें 
 हया  जब- जब गिरी  नाली में  बहा आँखों से पानी है 

 धब्बे   खूँ  के  न  धुल   सके  लाख  बरसातों  के बाद 
 माथे   पर   लगे   धब्बों  की  बड़ी  लम्बी  कहानी  है  

 उनको   मालूम  न  था    जिश्मे-  दौलत  की कीमत
उफ़ , चंद   सिक्को  पे   थिरकती  जिश्मे  - जवानी है

या   रब ये  दुनियाँ  है   तुम्हारी  या  खूँ   की दरिया  है
जहाँ  देखो  ज़िधर  देखो जिश्मे-तिज़ारत की कहानी है 
                                                  मधु "मुस्कान"

   



   

सोमवार, 1 जुलाई 2013

मधु सिंह : न वो आए न नींद आई



      न  वो आए न नींद आई 


 न    वो   आए ,  न   नींद  आई ,  न  ख्वाब आए 
कौन   है  मेरी  पलकों  में  इस कदर समाया हुआ 

रस्में  -  सितम   एक   नहीं   हज़ार   थीं   लेकिन 
है  कोई   लबे-  खामोशिओं  से  ज़ुल्म  ढाया हुआ 

बात   दीगर  है  कि  न  वो  सनम  है न ख़ुदा मेरा 
है वो क्या मेरा जो  इस तरह है दिल पे छाया हुआ 

गुज़री मेरी भी और उसकी भी , गुज़र भी जाएगी 
है ज़िगर पे  चोट कहीं  वो गहरा बहुत खाया हुआ 

शब-ए- इंन्तिज़र ,सहरे-जुनूं के ज़लज़ले तो देखो 
है  किसी यार की आँखों में जाम पी के आया हुआ 

है क्या हुआ उसे, मेरे दिल पे हज़ार ख़राबी गुज़री
कि दिले-कू-ए-यार में है एक ज़लज़ला आया हुआ 

                                     मधु "मुस्कान"