आज आई थी मैं ,अपने साजन के घर,
अभी, साजन ने मुझको निहारा ही था
अभी, साजन ने मुझको निहारा ही था
शरम से मैं , घूँघट में तड़प ही रही थी,
उनकी नज़रों का ,कातिल इसारा ही था
उनकी नज़रों का ,कातिल इसारा ही था
चाँद शर्मा के मुझसे कहीं छुप गया
ज्वार दिल में उठे,अभी नथ उतारा ही था
ज्वार दिल में उठे,अभी नथ उतारा ही था
हाथ ज्यों ही उठे ऊनके, घूँघट उठाने
मै समझी भंवर, पर में किनारा ही था
चाँद मुझसे न जाने क्यों खफ़ा हो गया
घूँघट चेहरे का मैंने ज्यों उतारा ही था
मैंने देखा सजन , तो मैं सिहर ही गई
मेरी आँखों में उसने बस निहारा ही था
छुप गया चाँद बदली में, रात काली हुई
उनकी बाहों का प्यारा वो सहारा ही था
रुक गई रात ,सब कुछ ठहर सा गया
शर्म से मेरे चेहरे का बदला नज़ारा ही था
मधु"मुस्कान"
मै समझी भंवर, पर में किनारा ही था
चाँद मुझसे न जाने क्यों खफ़ा हो गया
घूँघट चेहरे का मैंने ज्यों उतारा ही था
मैंने देखा सजन , तो मैं सिहर ही गई
मेरी आँखों में उसने बस निहारा ही था
छुप गया चाँद बदली में, रात काली हुई
उनकी बाहों का प्यारा वो सहारा ही था
रुक गई रात ,सब कुछ ठहर सा गया
शर्म से मेरे चेहरे का बदला नज़ारा ही था
मधु"मुस्कान"